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Dharmnirpeksh Bharat

By: Material type: TextTextPublication details: Jaipur Rawat Publications 2024 Description: 396 pISBN:
  • 9788131614105
Subject(s): DDC classification:
  • H 342.023 DUB
Summary: धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा बहुत जटिल है। यह एक अनेकार्थक शब्द है। यह इस विश्वास से संबंधित है कि व्यक्ति के कार्य और उसके निर्णय धार्मिक विश्वास और प्रभाव की अपेक्षा विवेक और व्यवहार बुद्धि पर आधारित होने चाहिए। धर्मनिरपेक्षता उदारवादी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण तत्व है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता, सहिष्णुता तथा सहअस्तित्व के परंपरागत मूल्यों ने भारत में उदार लोकतांत्रिक संविधानवाद को अपनाए जाने का आधार प्रदान किया। भारत के लोगों को स्वतन्त्रता, समानता, न्याय तथा गरिमा दिलाने के लिए, और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए, धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपनायी गयी है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता सर्वधर्म समभाव तथा समान सुअवसर के सिद्धांत पर आधारित है। संविधान सभी धर्मों को समान आदर देने की बात करता है, सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता देता है, साथ ही अल्पसंख्यक वर्गों के हितों को संरक्षण प्रदान करता है। प्रस्तुत पुस्तक में संवैधानिक उपबन्धों तथा उनके क्रियान्वयन का उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के प्रकाश में विवेचन करने का प्रयास किया गया है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण, इस्लामोफोबिया, सामाजिक न्याय और जाति आधारित आरक्षण, एक समान सिविल संहिता, धर्मांतरण, लव जेहाद, गौहत्या, सम्प्रदायवाद तथा साम्प्रदायिक
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धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा बहुत जटिल है। यह एक अनेकार्थक शब्द है। यह इस विश्वास से संबंधित है कि व्यक्ति के कार्य और उसके निर्णय धार्मिक विश्वास और प्रभाव की अपेक्षा विवेक और व्यवहार बुद्धि पर आधारित होने चाहिए। धर्मनिरपेक्षता उदारवादी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण तत्व है। भारत में धार्मिक स्वतंत्रता, सहिष्णुता तथा सहअस्तित्व के परंपरागत मूल्यों ने भारत में उदार लोकतांत्रिक संविधानवाद को अपनाए जाने का आधार प्रदान किया। भारत के लोगों को स्वतन्त्रता, समानता, न्याय तथा गरिमा दिलाने के लिए, और राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए, धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था अपनायी गयी है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता सर्वधर्म समभाव तथा समान सुअवसर के सिद्धांत पर आधारित है। संविधान सभी धर्मों को समान आदर देने की बात करता है, सभी व्यक्तियों को धर्म की स्वतंत्रता देता है, साथ ही अल्पसंख्यक वर्गों के हितों को संरक्षण प्रदान करता है। प्रस्तुत पुस्तक में संवैधानिक उपबन्धों तथा उनके क्रियान्वयन का उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के प्रकाश में विवेचन करने का प्रयास किया गया है। अल्पसंख्यकों के अधिकारों का संरक्षण, इस्लामोफोबिया, सामाजिक न्याय और जाति आधारित आरक्षण, एक समान सिविल संहिता, धर्मांतरण, लव जेहाद, गौहत्या, सम्प्रदायवाद तथा साम्प्रदायिक

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