Kahe Latif
Material type:
- 9789369441624
- H 891.43 LAT
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.43 LAT (Browse shelf(Opens below)) | Available | 181214 |
हृदय से पहुँचो साजन तक पाँव से पैदल करना बेकार पहाड़ों में न ढूँढ़ो उसके निशान ससुइ, चाल चलो रुहानी ""सिन्धी होने का मतलब है 'शाह जो रिसालो से वाक़फ़ियत"", अनुवादक रीटा कोठारी लिखती हैं। 'रिसालो' सिन्ध के सूफ़ी सन्त-कवि शाह अब्दुल लतीफ़ (1689-1752) का दीवान है; सूफ़ी साहित्य का अमूल्य मोती है रिसालो। इसकी उपज सूफ़ी विचारधारा से हुई है, किन्तु ये सिन्ध की मिट्टी-उसकी लोक कहानियाँ, पेड़-पौधे, जंगल और जानवर-का आईना भी है। सिन्धी से हिन्दी में अनूदित, प्रस्तुत है रीटा कोठारी की क़लम व अनुभव से, रिसाले के बैतों (पद्य) का एक अनूठा संग्रह : 'कहे लतीफ़’।
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