M.N. Roy nawogr-maanawbaad aur Marx 1991
Material type:
- 8171930050
- H 320.5315 KAP
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 320.5315 KAP (Browse shelf(Opens below)) | Available | 56667 |
मानववादी दर्शन की श्रृंखला में मानवेन्द्र नाथ रॉय एक महत्वपूर्ण नाम है। आधुनिक भारतीय राजनैतिक चिन्तन के इस लब्ध-प्रतिष्ठ मनीषी के दर्शन को हिन्दी प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना इस लेखक का ध्येय रहा है।
परम्परागत मानववाद को आधुनिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य
में पुनर्जागृत कर रॉय ने वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। मानववाद के मूलभूत-सार को तार्किक रीति से विश्लेषित करते हुए उसे एक नवीन दृष्टि प्रदान की। रॉय के इसी प्रयास के फलस्वरुप मानववाद को नव-मानववाद अथवा उग्र-मानववाद अथवा वैज्ञानिक-मानववाद कह कर आधुनिकता का परिवेश दिया गया। लेखक ने इसे ही नवोग्र मानववाद कह कर संश्लेषित किया है।
प्रस्तुत पुस्तक, रॉय के इसी नवोग्र मानववादी दर्शन का विश्लेषणात्मक विवेचन है; उदारवाद और स्वतंत्रता के मूलभूत सिद्धान्तों के साथ इस दर्शन की तारतम्यता का स्पष्टीकरण है; वर्तमान विश्व जिस संकट के दौर से गुज़र रहा है, उस संत्रास के समाधान का दर्शन है।
साथ ही, यह पुस्तक आधुनिक जगत के दो प्रभावशाली राजनैतिक चिन्तकों यथा; एम. एन. रॉय एवं कार्ल मार्क्स के दर्शन का विश्लेषणात्मक विवेचन करते हुए, मानववादी चिन्तन की मुख्यधारा की दो महत्वपूर्ण लहरों के रूप में इन दोनों विचारकों के चिन्तन में मानववादी प्रवाह की साम्यता का एक शोधात्मक अध्ययन है। चिन्तन के अपने अन्तिम सोपान में रॉय को मार्क्सवाद-विरोधी कह कर संबोधित किया गया। परन्तु रॉय के द्वारा स्वीकृत मार्क्सवाद और परम्परागत रूद-मार्क्सवाद के मध्य विश्लेषणात्मक रीति से एक स्पष्ट अन्तर चित्रित करते हुए इस पुस्तक में उपर्युक्त धारणा का खंडन किया गया है। और, रॉय और "उसके मार्क्स" का परिचय स्पष्ट करते हुए दोनों ही दार्शनिकों के सम्बन्धों में उपजी भ्रान्तियों के निवारण का प्रयास किया गया है।
नवोग्रमानववादी दर्शन के मूलभूत आधार २२ थीसिस का अनूदित संयोजन इस पुस्तक का महत्वपूर्ण संकलन है।
विश्व स्तरीय समस्याओं की विकट होती स्थितियों और विशेषकर भारत की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में रॉय के नवोध मानववाद दर्शन में रॉय का दूरंदेशी चिन्छन आज एक महत्वपूर्ण प्रासंगिकता लिए हुए है। प्रस्तुत कृति इसे सामान्य मानव तक पहुँचाने का प्रयास रही है।
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