अपार सन्तोष है कि विश्वविद्यालयों के छात्रों तथा भारतीय दर्शन के अनुरागियों को यह पुस्तक उपादेय सिद्ध हुई है। प्रथम संस्करण की पुस्तक प्रायः दो वर्ष पहले ही समाप्त हो चुकी थी। परन्तु मूल ग्रन्थ के नवीनतम संस्करण के अनुसार हिन्दी अनुवाद के आयोपान्त परिवर्तन परिवर्तन व परिशोधन के प्रयास में इस द्वितीय संस्करण के प्रकाशन में दिल हो गया है। यदि यह नवीन रूपान्तर अधिक उपयोगी सिद्ध हो तभी यह erie होगा । मूल ग्रन्थ का रूसी भाषा में अनुवाद तथा बहुत प्रचार हुआ है; स्मानित और इताजिन में भी अनुवाद होने जा रहा है परन्तु भारतीय भाषाओं में हिन्दी ही को इसके प्रचार का गौरव प्राप्त है।