Bhrashta Samaaj v.2001
- New Delhi Kitabghar 2001
- 190p.
वर्तमान समय में भारत का स्थान संसार के दस सर्वाधिक भ्रष्ट राष्ट्रों में से एक है राजनीतिक वर्गों, नौकरशाहों, व्यापारियों तथा संगठित गिरोहों से लेकर लालची सरकारी लिपिकों, नगरपालिका के कर्मचारियों और छोटे-मोटे धोखेबाजों जैसे निचले स्तरों के मध्य व्याप्त बहुचर्चित साँठगाँठ के कारण राष्ट्रीय राजकोष के मूल्य पर गैरकानूनी परियोजनाएँ आज एक आम बात हो गई हैं। एक साधारण अनुमान के अनुसार आज भारत में लगभग 33,000 करोड़ रुपए की समानांतर अर्थव्यवस्था व्याप्त है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद लगभग बराबर है
. चंदन मित्रा के विस्तृत तथा तीक्ष्ण अध्ययन ने उपमहाद्वीप में भ्रष्टाचार के इतिहास की खोज कौटिल्य के समय से लेकर मुगल काल तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के दिनों तक और अंत में स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् के भारत में की है। इस बात की चर्चा करते हुए कि किस प्रकार इस रुग्णता ने संस्था का रूप धारण कर लिया है, लेखक ने कथित बोफोर्स दलाली, चारा तथा बैंक प्रतिभूति घोटालों तथा 'हवाला' रुपयों के लेन-देनों के विवरणों की खोज की है और भ्रष्टाचार का उपयोग राष्ट्र की नीति के एक साधन के रूप में किए जाने की गुप्त सरकारी प्रथाओं से इन्हें सहयोजित किया है पुनः, रोजमर्रा के जीवन में साधारण भ्रष्टाचार के प्रचुरोद्भव तथा वैधीकरण का वर्णन करते हुए उन्होंने आज के समय में व्याप्त घूसखोरी की 'हफ्ता', 'चाय-पानी', 'कटौती'; 'कालाबाजारी' की सुस्पष्ट प्रणालियों का सुदृढ़ लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है।
मित्रा का साहसिक एवं उत्तेजनात्मक विश्लेषण इस बात का दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि भ्रष्टाचार निरोधक कानूनों से बाहर निकलने एवं कानून के प्रवर्तन से बच जाने के उपायों को सोच निकालने में किस प्रकार भ्रष्ट व्यवहारों के कर्ता सदा ही प्राधिकारियों से आगे रहते हैं। साथ ही साथ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए न्यायिक सक्रियतावादियों द्वारा उठाए गए प्रामाणिक कदमों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 'भ्रष्ट समाज' व्यवहारिक उपायों को खोजने का प्रयास करता है। यह महन मूल तक सराबोर एवं व्यापक सामाजिक बुराई का एक आलोचनात्मक एवं कठोर, कटु विस्पोटक लेखा जोखा है।