चिरकाल से समाज की इकाई को न्याय दिलाने एवं उसके अधिकारों के रक्षार्थ पुलिस संगठन राज्य नामक संस्था में किसी न किसी रूप में विद्यमान रहा है। विश्व के वर्तमान दौर में सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के प्रति व्यक्ति और समाज की चेतना में एक नई दिशा इस शताब्दी के मध्य गठित संयुक्त राष्ट्र संघ के नेतृत्व में मिलती है। भारतीय संविधान में भी इस संकल्प को दोहराया गया है। सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के प्रतिपादन में पुलिस की भूमिका में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन की आकांक्षा आज प्रत्येक सामाजिक इकाई को है। लेखक ने पुलिस की इस भूमिका का आंकलन प्रस्तुत करने का प्रयास इस पुस्तक में किया है। यह पुस्तक प्रत्येक कर्मी तथा प्रशासन के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है।