krishna Kumar

Shaikshik gyan aur varchaswa v.1998 - Delhi Grantha Shilpi 1998 - 129p.

यह सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है कि शिक्षा संस्थाओं में क्या पढ़ाया जाए। पाठ्यक्रम के निर्माण में यह बुनियादी फैसला शिक्षातंत्र के तानेबाने में इतनी गहराई में छिपा होता है कि वहां तक हमारी निगाह नहीं पहुंच पाती है। पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों में शामिल ज्ञान और विषयवस्तु समाज के किन वर्गों की जीवन शैली और मान्यताओं को प्रतिबिंबित करती है, यह सवाल प्रायः उपेक्षित रहता है। इस सवाल के दायरे में सोचने की जहमत पाठ्यक्रम के निर्माण में लगे लोग नहीं उठाते या कहना चाहिए नहीं उठाना चाहते ।

एक तरफ स्कूल व्यवस्था का बंटा हुआ ढांचा समाज में पहले से स्थापित वर्चस्व की जड़ों को मजबूत बनाता है, दूसरी तरफ शासनतंत्र की ओर से लागू की गई पाठ्यपुस्तक के दायरे में घूमता शिक्षक यथास्थिति को बनाए रखने में अपनी दैनिक राजनीतिक भूमिका निभाता चलता है।

यह पुस्तक शैक्षिक ज्ञान को सामाजिक संदर्भ में जांचने के प्रयास का परिणाम हैं । इसमें कुछ ऐसे बुनियादी सवालों पर विचार किया गया है जिनकी शिक्षाशास्त्री अकसर उपेक्षा करते हैं और मानते हैं कि शिक्षा में ऐसे प्रश्नों पर विचार से कोई फायदा नहीं है। मगर ज्ञान को अगर मुक्ति का साधन बनना है, शिक्षा को हमें अगर अपने सामाजिक विकास के संदर्भ में देखना है तो इन सवालों से बचकर निकला नहीं जा सकता है।

पुस्तक शिक्षकों, शिक्षाशास्त्रियों और शिक्षा के व्यवस्थापकों के समक्ष अनेक चुनौतीपूर्ण सवाल रखती है जिनको गंभीरता से लेने की जरूरत है।

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