Pachori, Sudhish

Prasar bharati aur prasaran niti - New Delhi Vani Prakashan 1999 - 215 p.

‘प्रसार भारती' ने एक आस जगाई है, दूरदर्शन और रेडियो सत्ता की गुलामी छोड़ स्वायत्त बोर्ड के अंतर्गत काम करने लगा है। जनतंत्र के लिए उसका होना जरूरी है। प्रसार भारती के बनने और बोर्ड के बनने की कहानी लंबी और दिलचस्प है। आज उसपर खतरे मंडराने लगे हैं। स्वायत्तता एक दैनिक आत्मसंघर्ष का मूल्य है, प्रदत्त मूल्य नहीं है। प्रसार भारती को सतत संघर्ष करना है। जनसंचार के किसी भी विद्यार्थी के लिए यह एक पठनीय विषय है।
छत्तीस चैनलों वाले देश के लिए एक स्पष्ट प्रसारणनीति का होना भी जरूरी है। इतने चैनलों के नियमन के लिए प्रसारण नीति को बनाने का आग्रह चौरानवे में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में किया था, लेकिन नीति अभी तक नहीं बन पाई है। राजनीतिअवसरवाद और प्रशासनिक तदर्थवाद उसे ठंडे बस्ते में डाल चुके हैं।
यह किताब प्रसार भारती को लेकर हुए निर्णयों और प्रसारणनीति को लेकर चले विवादों को आलोचनात्मक नजर से देखती है। परिशिष्ट में 'प्रसारभारती' / 1990 / मूल कानून के हिन्दी अनुवाद के अलावा प्रसार भारती बनाए जाने के पहले के विभिन्न प्रयासों यथा 'आकाशभारती'/ 1978/, स्वायत्तता से संबंधित जोशी रिपोर्ट तथा 1997 में प्रस्तावित 'प्रसारण नीति विधेयक' का प्रारूप भी दिया जा रहा है जो पाठकों को अन्यथा उपलब्ध नहीं है।

8170556813

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