क्या आप किसी ऐसे विचारक की कल्पना कर सकते हैं जो पाठशालाओं को बंद कर देने का हिमायती हो ? क्या आपने किसी ऐसे चिंतक की कोई रचना पढ़ी है जिसमें उसने समाज को स्कूलों से मुक्त कर देने की बात लिखी हो ? क्या आपने किसी दार्शनिक के मुंह से ऐसे क्रांतिकारी विचार सुने हैं कि सारी स्कूली इमारतों को बुलडॉज कर देना चाहिए और मदरसों की दीवारों को गिरा देना चाहिए?
हां, विश्व में एक ऐसा शिक्षा-मनीषी हुआ है, जो समाज से विद्यालयों को जड़ से उखाड़ फेंकने की बात करता है। इवान इलिच बीसवीं शताब्दी का एक ऐसा विचारक है जिसने शिक्षा, चिकित्सा-उद्योग, यौन-विज्ञान एवं शैक्षिक मनोविज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में अनेक पूर्वस्थापित मानदंडों, मुहावरों और मान्यताओं को खंडित किया है। उसकी सर्वाधिक चर्चित होने वाली पुस्तक है 'डी स्कूलिंग सोसायटी' शिक्षा के संस्थायीकरण, ज्ञान के अनुशासनजन्य कारावासीकरण एवं एकांतीकरण के विरुद्ध यह रचना समग्र सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक एवं मूल्यगत संदर्भों के साथ जब बुद्धिजीवियों के बीच उपस्थित होती है, तो सदियों से प्रचलित प्रणालियों, पद्धतियों, प्रविधियों, प्रक्रियाओं, नियमों व सिद्धान्तों के स्तम्भ हिल उठते हैं। स्कूल नामक संस्था को भंग कर दिये जाने पर हमारे समाज का क्या होगा ? हमारी उस मानसिकता का क्या होगा जो विद्यालय के बिना ज्ञान की कल्पना नहीं करती ? ऐसे तमाम प्रश्न इस पुस्तक में इवान इलिच ने उठाये हैं। इस पुस्तक में उठाए गए क्रांतिकारी एवं विध्वंसकारी विचार हमें तरह-तरह से सोचने के लिए मजबूर करते हैं। पहले पन्ने से अंतिम पृष्ठ तक विचारोत्तेजक बहस की बौछारों से हांपती हुई यह पुस्तक पाठकों से गंभीर चिंतन एवं विचारणा की मांग करती है।