टॉल्स्टॉय का गहन शैक्षिक कार्यकलाप 1859 में शुरू हुआ, जब उन्होंने अपने गांव यास्नाया पोल्याना में किसानों के बच्चों के लिए स्कूल खोला। टॉल्स्टॉय ने स्कूल में जो व्यवस्था कायम की, वह उनके अपने कार्यक्रम के मुताबिक थी विद्यार्थियों के बैठने की कोई निश्चित जगह नहीं होती थी और जिसकी जहां मर्जी होती थी, बैठ जाता था। सजा देने की सख्त मनाही थी । होमवर्क नहीं किया जाता था इसलिए अगले दिन अध्यापक पहले पढ़ायी जा चुकी सामग्री के बारे में कोई सबाल नहीं पूछता था ।
टॉल्स्टॉय के स्कूल में अध्यापक का कार्य सामान्य स्कूल की अपेक्षा कहीं अधिक कठिन था । सामान्य स्कूल में बंधा हुआ टाइम-टेबुल, कठोर अनुशासन, पुरस्कार तथा दंड के निश्चित तरीके और कड़ाई से निर्धारित पाठ्यक्रम होता था, जबकि टॉल्स्टॉय के स्कूल में अध्यापक से शैक्षिक सृजन की अपेक्षा की जाती थी
टॉल्स्टॉय ने अपने स्कूल में अध्यापकों को आमंत्रित करते हुए लिखा था, 'ऐसे सभी अध्यापक हमारे संवादी हो सकती हैं, जो अपने कार्य को मात्र जीविका उपार्जन का साधन या बच्चों को पढ़ाने की ड्यूटी नहीं मानते, बल्कि शिक्षा को वैज्ञानिक प्रयोगों का क्षेत्र भी मानते हैं। एक विज्ञान के तौर पर शिक्षाशास्त्र धैर्य और लगन के साथ हर कहीं किये जाने 'वाले प्रयोगों के जरिये ही आगे बढ़ सकता है।'