Bhushan,P.S

Police aur samaj v.1998 - Delhi Manisha 1998 - 330p

देश के प्रजातांत्रिक स्वरूप को देखते हुये पुलिस के कर्तव्य एवं दायित्व का दायरा काफी विस्तृत एवं पेचीदा बन गया है। ब्रिटिश शासन के दौरान तथा उसके बाद के दशक तक पुलिस अपनी मनमानी करती रही और असहाय, निर्दोष तथा सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों पर विभिन्न प्रकार से अत्याचार ढाती रही। मानव अधिकार आयोग की रिपोर्ट के ब्यौरे यह दर्शाते हैं कि देश में झूठे मुठभेड़ के हादसे तथा कानून का अतिक्रमण होता रहा है। पुलिस कदम-कदम पर मानव अधिकारों का उल्लंघन करती रही है। यह सही है कि पुलिस को काफी कानूनी अधिकार प्राप्त हैं लेकिन उनके दुरुपयोग का अधिकार प्राप्त नहीं है। लोग थानों में अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए जाने से डरते हैं। आम आदमी के दिल में यह धारणा है कि पुलिस न्याय देने के बजाय या तो गाली-गलौच करती है या पिटाई करती है। समाचार पत्र भी पुलिस छवि को अच्छा नहीं बताते हैं। आज भी जनता द्वारा लगाये जाने वाले नारों में प्रसिद्ध नारा है पुलिस की तानाशाही नहीं चलेगी, ब्रिटिश सरकार की पुलिस नहीं चलेगी।

समाज के रीति-रिवाज तथा संस्कृति समय के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। समाज में जैसे-जैसे जागरूकता आती है, प्रगति और विकास होता है तथा शिक्षा का प्रसार होता है, वैसे-वैसे ही उसे सुरक्षा और सामाजिक तथा कानूनी न्याय जो एक आम मानव को मिलना चाहिए की आवश्यकता महसूस होती है। अतः पुलिस को सामाजिक मूल्यों, आदशों, कानूनी नियमों तथा मानवता को ध्यान में रखते हुये देश में कानून और शांति व्यवस्था लागू करनी चाहिए। पुलिस को छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर आदि का भेदभाव दिल में नहीं रखना चाहिए। पुलिस कानून की रक्षक है भक्षक नहीं। अतः यदि पुलिस भक्षक बन जायेगी तो रक्षा का कार्य कौन करेगा। पुलिस द्वारा कहे गये शब्द अनुकरणीय होते हैं। अतः पुलिस को एक आदर्श स्वरूप प्रस्तुत करना चाहिए। वह जमाना गया, जब भी रोते हुये बच्चे को चुप कराने के लिए कहती थी कि बेटा चुप हो जा नहीं तो पुलिस पकड़ कर ले जायेगी।

आजकल परिस्थितियों में परिवर्तन आया है। लोगों को अपने अधिकारों का ज्ञान हुआ हैं। अतः कोई भी सरकारी कर्मचारी उसके अधिकारों का हनन् नहीं कर सकता है। भारत के संविधान में वर्णित मानव अधिकारों को पुलिस को ध्यान में रखना होगा। सभी पुलिस कर्मियों को मानव अधिकारों का ज्ञान नितान्त आवश्यक है। आम जनता को भी अपने अधिकारों के बारे में जागरूक रहना चाहिए। इसके लिए पुलिस को प्रशिक्षण के दौरान तथा जनता को स्कूली शिक्षा के दौरान ज्ञान हासिल कराना चाहिए। पुलिस कर्मियों के चयन में सतर्कता बरतनी चाहिए तथा भ्रष्टाचार को दूर करना चाहिए।

डॉ भूषण ने उन परिस्थितियों में मेरे साथ दिल्ली पुलिस में काम किया जब देश में आतंकवाद अपनी चरमसीमा पर था और ये जिन्दा बम्बों को अपने हाथों से निष्क्रिय किया करते थे। अपराध शाखा में नियुक्ति के दौरान इन्होंने अनेक प्रशंसनीय कार्य किये ना केवल सदर बाजार इलाके में सामप्रदायिक दंगों के दौरन इनकी भूमिका अतुलनीय रही थी अपितु आज भी अतुलनीय हैं। मैं इनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से भति-भाँति परिचित है। जो अन्य पुलिस कर्मियों के लिए भी अनुकरणीय है।

डॉ. भूषण की यह पुस्तक पुलिस और समाज पुलिस द्वारा किये जाने वाले कर्तव्य तथा मानव अधिकारों के विभिन्न पहलुओं का एक सरल भाषा में विवेचन करती है। इसमें पुलिस प्रशिक्षणार्थियों के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुये, भारत और दिल्ली का सामान्य परिचय, राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन, राष्ट्र के निर्माता, भारतीय संविधान, स्वतंत्रता के बाद भारत में समसामयिक परिस्थितियाँ, परिवर्तन तथा पुलिस, समाज के कमजोर वर्ग का उत्थान, राजनैतिक एवं साम्प्रदायिक दल तथा उनकी विचारधाराएँ, राष्ट्रीय एकता तथा प्रमुख सामाजिक एवं समसामयिक परिस्थितियाँ तथा पुलिस कर्त्तव्य का सारगर्भित ढंग से वर्णन किया गया है। प्रतिदिन की कार्यप्रणाली को ध्यान में रखते हुये आचार नीति, पुलिस आचरण और पुलिस वृत्ति, मानव मूल्य, पुलिस व्यवहार और पुलिस छवि पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला गया है। पाँचवे भाग में इस बात पर जोर दिया है कि पुलिस के जनता के साथ तथा विभिन्न अवसरों पर कैसे व्यवहार होने चाहिए। अंत में मानव अधिकारों का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है। जिनका अध्ययन मानवता की सुरक्षा के लिए भी नितान्त आवश्यक है। उन्होंने सभी महत्वपूर्ण मुद्दे जो प्रत्येक पुलिसकर्मी को प्रतिदिन के कार्यकलाप में आवश्यक हैं, बाखूबी प्रस्तुत किये हैं। पुलिस को किसी भी प्रकार के दबाव या व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर जनसेवा की भावना को ध्यान में रखते हुये अपने कर्त्तव्य को अंजाम देना चाहिए।

H 363.2 BHU