भारत की विविध प्रादेशिक भाषाओं के नाट्य / रंगकर्म को एक दूसरे के निकट लाने और उन्हें आधुनिक भारतीय रंगमंच का व्यापक परिप्रेक्ष्य प्रदान करने में हिंदी ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। परंतु बांग्ला, मराठी और कन्नड़ जैसी रंग-समुद्र भाषाओं के मुकाबले ओड़िया का योगदान बहुत कम रहा है।