Rai Chaudhury, Vimalkant

Raag vayakaran - New Delhi Vani 1998 - 635 p.

संगीत के शिक्षकों, विद्यार्थियों और संगीत में रुचि रखनेवाले सामान्य पाठकों के लिए 'राग व्याकरण' संगीत-शास्त्र का एक अनुपम सन्दर्भ ग्रन्थ है। उत्तर भारत की संगीत-पद्धतियों में प्रचलित सैकड़ों रागों के स्वर - संयोजन का विश्लेषण तो यहाँ उपलब्ध है ही, श्री विमलाकान्त रायचौधुरी ने अपने अभ्यास और अनुभव के आधार पर दक्षिण भारत की संगीत-पद्धति के ७२ मेलकर्ता और ९६१ रागों के आरोह-अवरोह का भी दिग्दर्शन कराया है। यहाँ तक कि भारतीय स्वरलिपि के अनुसार भारतीय टोनिक सोल्फ़ा में ४८ पश्चिमी मेजर और माइनर स्वर- क्रम भी सम्मिलित किए हैं। पश्चिमी संगीत के स्वरक्रमों को भारतीय संगीत के स्वरक्रमों से मिलान करने और समझने-परखने की जो रुचि अन्तर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इस युग में दिनों-दिन बढ़ती जा रही है, उसके संवर्धन और समाधान की दिशा में 'राग व्याकरण' असंदिग्ध रूप से अद्वितीय है।
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा पूर्व-प्रकाशित 'भारतीय संगीत कोश' के साथ मिलकर यह 'राग व्याकरण' संगीत के सागर को गागर में भर देता है। यदि आपको संगीत में वास्तविक रुचि है तो यह असम्भव है कि आपको यह पता लगे कि ये दोनों कृतियाँ हिन्दी में उपलब्ध हैं और आप इन्हें अपने पास सन्दर्भ-ग्रन्थों के रूप में न रखना चाहें। समर्पित है ज्ञानपीठ के प्रकाशनों का एक नया सांस्कृतिक आयाम । अब यह पुस्तक नयी साज-सज्जा के साथ वाणी प्रकाशन प्रकाशित कर रहा है। उम्मीद है हमारे पाठक इसका लाभ उठायेंगे।

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