Rajurkar, B. H. (ed.)

Tulanatmak adhyayana:bharatiya bhashayen aur sahitya - New Delhi Vani 1992 - 168 p.

प्रस्तुत पुस्तक 'तुलनात्मक अध्ययन : स्वरूप और समस्याएं' की अगली कड़ी है। इसमें भारतीय भाषाओं और साहित्य से संबंधित कुछ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किये गये हैं। इसमें मराठी, गुजराती, तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं के साथ हिन्दी भाषा तथा साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन से संबंधित लेख संकलित हैं। हिन्दी और उर्दू महाराष्ट्र विशेषकर मराठवाड़ा में आंचलिक बोलियों के रूप में प्रचलित रही हैं। इनका मिलाजुला रूप दक्खिनी कहा जाता है। स्वतंत्रता आन्दोलन में हिंदी-उर्दू के ऐतिहासिक योगदान पर भी इसमें अलग से चर्चा की गयी है।
पुस्तक में तीन खंड हैं। प्रथम संद में हिन्दी-मराठी, द्वितीय खंड में हिन्दी एवं अन्य भाषाएं और तृतीय खंड में दो अंग्रेजी से अनूदित लेख है जिनमें कमदाः महाराष्ट्र में कृषि और औद्योगिक विकास और भारत और विदेशों में नशीली दवाइयों का दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक अपने विषय से संबंधित पहली पुस्तक है।

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