Bulke, Father Kalim

Ramkhata : utpatti aur vikash 1993 - 4th rev. ed. - Prayag Hindi parishad 1997. - 666p.

प्राचीन भारत के समान ही आधुनिक यूरोप ज्ञान सम्बन्धी खोज के क्षेत्र में अग्रसर रहा है। यूरोपीय विद्वान ज्ञान तथा विज्ञान के रहस्यों के उद्घाटन में निरंतर पत्नशील रहे हैं। उनकी इस खोज का क्षेत्र यूरोप तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि संसार के समस्त भागों पर उनकी दृष्टि पड़ी। इस महत्त्वपूर्ण ग्रंथ के लेखक फादर बुल्के को हम इन्हीं विद्याव्यसनी यूरोपीय अन्वेषकों की श्रेणी में रख सकते हैं। भारतीय विचारधारा समझने के लिए इन्होंने संस्कृत तथा हिन्दी भाषा और साहित्य का पूर्ण परिश्रम के साथ अध्ययन किया। प्रयाग विश्वविद्यालय से हिंदी में एम० ए० की परीक्षा पास करने के उपरान्त आप ने डी० फिल० के लिए 'रामकथा का विकास' शीर्षक विषय चुना। प्रस्तुत ग्रंथ उनका थीसिस ही है जिस पर उन्हें प्रयाग विश्वविद्यालय से डी० फिल० की उपाधि मिली है।

सुयोग्य लेखक ने इस ग्रंथ की तैयारी में कितना परिश्रम किया है यह पुस्तक के अध्ययन से ही समझ में आ सकता है। रामकथा से सम्बन्ध रखने वाली किसी भी सामग्री को आप ने छोड़ा नहीं है। ग्रंथ चार भागों में विभक्त है। प्रथम भाग में 'प्राचीन रामकथा साहित्य का विवेचन है। इसके अन्तर्गत पाँच अध्यायों में वैदिक साहित्य और रामकथा, वाल्मीकिकृत रामायण, महाभारत की रामकथा, बौद्ध रामकथा तथा जैन रामकथा संबंधी सामग्री की पूर्ण परीक्षा की गई है। द्वितीय भाग का संबंध रामकथा की उत्पत्ति से है और इसके चार अध्यायों में दशरथ जातक की समस्या, रामकथा के मूल स्रोत के सम्बन्ध में विद्वानों के मत, प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के मुख्य प्रक्षेपों तथा रामकथा के प्रारंभिक विकास पर विचार किया गया है। ग्रंथ के तृतीय भाग में 'अर्वाचीन रामकथा साहित्य का सिंहावलोकन' है। इसमें भी चार अध्याय हैं। पहले और दूसरे अध्याय में संस्कृत के धार्मिक तथा ललित साहित्य में पाई जाने वाली रामकथा सम्बन्धी सामग्री की परीक्षा है। तीसरे अध्याय में आधुनिक भारतीय भाषाओं के रामकथा सम्बन्धी साहित्य का विवेचन है। इसमें हिंदी के अतिरिक्त तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, काश्मीरी, सिंहली आदि समस्त भाषाओं के साहित्य की छानबीन की गई है। चौथे अध्याय में विदेश में पाये जाने वाले रामकथा के रूप का सार दिया गया है और इस सम्बन्ध में तिब्बत, खोतान, हिंदेशिया, हिंदचीन, श्याम, ब्रह्मदेश आदि में उपलब्ध सामग्री का पूर्ण परिचय एक ही स्थान पर मिल जाता है। अंतिम तथा चतुर्थ भाग में रामकथा सम्बन्धी एक-एक घटना को लेकर उसका पृथक्-पृथक् विकास दिखलाया गया है। घटनाएँ कांडक्रम से ली गई हैं अत: यह भाग सात कांडों के अनुसार सात अध्यायों में विभक्त है। उपसंहार में रामकथा की व्यापकता, विभिन्न रामकथाओं की मौलिक एकता प्रक्षिप्त सामग्री की सामान्य विशेषताएँ, विविध प्रभाव तथा विकास का सिंहावलोकन है।

इस संक्षिप्त परिचय से ही स्पष्ट हो गया होगा कि यह ग्रंथ वास्तव में रामकथा सम्बन्धी समस्त सामग्री का विश्वकोष कहा जा सकता है। सामग्री की पूर्णता के अतिरिक्त विद्वान लेखक ने अन्य विद्वानों के मत की यथास्थान परीक्षा की है तथा कथा के विकास के सम्बन्ध में अपना तर्कपूर्ण मत भी दिया है। वास्तव में यह खोजपूर्ण रचना अपने ढंग की पहली ही है और अनूठी भी है। हिन्दी क्या किसी भी यूरोपीय अथवा भारतीय भाषा मैं इस प्रकार का कोई दूसरा अध्ययन उपलब्ध नहीं है। अतः हिंदी में इस लोकप्रिय विषय पर ऐसे वैज्ञानिक अन्वेषण के प्रस्तुत करने के लिए विद्वान लेखक बधाई के पात्र है। आशा है कि भविष्य में उनकी लेखनी से इस प्रकार के अन्य खोजपूर्ण ग्रंथ प्रकाश में आयेंगे। प्रस्तुत अध्ययन का उत्तरार्ध 'राम-भक्ति का विकास' तो शीघ्र ही प्रकाशित होना चाहिए। प्रयाग विश्वविद्यालय हिन्दी परिषद् को इस बहुमूल्य कृति के प्रकाशन पर गर्व होना स्वाभाविक है।


Ram katha

H 294.5922