Upbhokta ka sochan se bachao tatha upbhokta aandolan
- Delhi Kosway book centre 1992.
- 182 p.
उपभोक्ता बाजार का 'स्वामी' होते हुए भी आज अत्यन्त निरीह प्राणी बनकर रह गया है यद्यपि उसके हित में दर्जनों कानून विद्यमान हैं। घटतौल, मिलावट, नकली सामान, अनुचित मूल्य भ्रमात्मक विज्ञापन तथा कृत्रिम अभाव आदि अनेक हथकण्डों के चलते वह बेहद परेशान है। उपभोक्ता को शोषण से बचाने तथा उसे संरक्षण
प्रदान करने के लिए राज्य तथा स्वैच्छिक संगठन प्रयासरत हैं फिर भी उसे पूर्ण राहत नहीं मिल पा रही है ।
उपभोक्ता के शोषण के विभिन्न आयामों तथा संरक्षण के विभिन्न उपायों का अध्ययन प्रस्तुत पुस्तक में इस प्रकार से राष्ट्रभाषा हिन्दी में किया गया हैं कि आम उपभोक्ताओं, उपभोक्ता संगठनों, प्रशासकों, नीति निर्माताओं तथा उपभोक्ता आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान करने वालों को मार्ग दर्शन प्राप्त हो सके । बहुचर्चित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की व्यवस्थाओं तथा इनके क्रियाबंयन का अधवन मूल्यांकन भी पुस्तक कर दिया गया हैं । में • प्रस्तुत
प्रस्तुत पुस्तक को उच्च कोटि की रचना मानकर भारत सरकार के खाद्य एवं नागरिक पूर्ति मंत्रालय ऊपर अखिल भारतीय मौलिक हिन्दी पुस्तक प्रतियोगिता' में प्रथम पुरस्कार से विभूषित किया गया है ।