Manak hindi ka swaroop v.1986
- Delhi Prabhat Prakashan 1986
- 210 p.
हिन्दी एक समर्थ भाषा है। उसका साहित्य भी सम्पन्न है, अब तो वह भौर भी सम्पन्न होता जा रहा है, किन्तु धमी तक हिन्दी भाषा का मानक रूप स्थिर नहीं हो पाया है। यही कारण है कि उच्चारण, वर्तनी, लेखन, रूपरचना, वाक्यगठन और अर्थ मादि सभी क्षेत्रों में पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों, भाषणों एवं बातचीत में घमानक प्रयोग प्रायः मिलते हैं। इसी समस्या पर व्यापक रूप से विचार करने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी गई है। प्रारम्भ में मानक भाषा और उसके प्रकारों को लिया गया है ताकि मानक हिन्दी को ठीक परि प्रेक्ष्य में समझा जा सके। किसी माया की मानकता धमानकता काफी कुछ उसकी बोलियों से जुड़ी होती है, पतः हिन्दी के क्षेत्र और उसकी बोलियों को सेना पड़ा है। फिर हिन्दी के मानकीकरण का इतिहास देते हुए हिन्दी में नागरी लिपि औौर पंकों, हिन्दी के संख्यावाचक शब्दों, हिन्दी उच्चारण, हिन्दी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा क्रिया विशेषण के रूपों, हिन्दी वाक्य रचना, हिन्दी में प्रयुक्त शब्दों और उनके धर्म, हिन्दी की प्रयुक्तियों तथा शैलियों भादि पर मानकता की दृष्टि से विचार किया गया है । अन्त में परिशिष्ट में मानक समानक प्रयोगों के कुछ उदाहरण है। इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में हिन्दी भाषा के मानक स्वरूप पर प्रपेक्षित विस्तार से प्रकाश डाला गया है। यह पुस्तक हिन्दी भाषा पौर भाषा विज्ञान में रुचि रखने वाले लेखकों, सम्पादकों, पाठकों पर विद्यार्थियों पादि सभी वर्ग के लोगों के लिए पठनीय व संग्रहणीय है।