Kaliya, Ravindra

Premchand : Dalit Evam Stree Vishayak Vichar - New Delhi Vani Prakashan 2025 - 128 p.

प्रेमचन्द : दलित एवं स्त्री विषयक विचार - प्रेमचन्द पर गाँधीजी के विचारों का प्रभाव था। लेकिन वे गाँधीजी के विचारों को आँख मूँदकर स्वीकार करनेवालों में न थे। कहा जा सकता है कि प्रेमचन्द का गाँधीवाद के साथ एक आलोचनात्मक रिश्ता था। उनकी लेखनी की सबसे बड़ी ताक़त विचारों की व्यापकता है। यह पुस्तक उनके विचारों का संकलन है जिसमें इस महान रचनाकार की सोच सीधे प्रतिबिम्बित होती है। प्रेमचन्द अपने समय के सम्भवतः अकेले ऐसे रचनाकार थे जिन्होंने हिन्दुस्तान के समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र—दोनों को ठीक से समझा था। उनकी यही समझ उन्हें किसानों-दलितों और स्त्रियों के पक्ष में खड़ा करती है। भारत जैसे विकासशील देशों के विषय में कार्ल मार्क्स ने कभी कहा था, "वहाँ स्त्रियाँ दोहरे शोषण की शिकार हैं।" प्रेमचन्द के समय और सन्दर्भ में इस कथन की व्याख्या स्वयंसिद्ध है। उन दिनों भारतीय स्त्रियों का शोषण विदेशी निज़ाम और देशी सामन्तवाद—दोनों के द्वारा हो रहा था। प्रेमचन्द ने बहुत बारीकी से इस तथ्य को समझा था। 'सेवासदन' की सुमन और 'कर्मभूमि' की मुन्नी जैसे चरित्रों के माध्यम से उन्होंने स्त्री-शोषण के रूपों को प्रकाशित किया। उनके समय में हुए स्त्री आन्दोलनों में एक आन्दोलन वेश्याओं के सुधार से सम्बन्धित था। प्रेमचन्द ने इस आन्दोलन का खुलकर समर्थन किया। आजकल हिन्दी में दलित लेखन एक आन्दोलन के रूप में चल रहा है। प्रेमचन्द को दलित लेखक महत्त्वपूर्ण लेखक तो मानते हैं लेकिन उनकी चेतना को क्रान्तिकारी नहीं मानते। अपने समय में प्रेमचन्द हिन्दी के अकेले ऐसे लेखक थे, जिन्होंने दलित समाज की उन्नति और दलित आन्दोलनों की सफलता हेतु पर्याप्त लेखन किया। आज के दलित लेखकों की उनसे सहमति-असहमति का अपना महत्त्व है। प्रेमचन्द के शोधार्थियों व विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक एक संचयन की तरह है तो आम पाठकों के लिए भी बराबर की उपयोगी।

9789371123471


Premchand

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