Bhartiya samvidhan ke nirmata
- New Delhhi Atlantic 2007
- 204p.
यह पुस्तक भारतीय संविधान के निर्माण की उस पृष्ठभूमि में लिखी गई है, जब भारतीय स्वाधीनता संग्राम का पावन यज्ञ समाप्त ही हुआ था तथा नव स्वतंत्र भारत अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रहा था। ऐसे समय में संविधान तैयार करते हुए हमारे नियंताओं को किस प्रकार की परिस्थितियों, समस्याओं एवं संघर्षों से जूझना पड़ा, उसकी एक बानगी इस पुस्तक में देखी जा सकती है। यह पुस्तक संविधान के विषय में प्रचलित कुछ मिथकों को तोड़ती है तथा तत्कालीन घटनाओं का निरपेक्ष भाव से मूल्यांकन करने का प्रयास करती है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर के संविधान सभा में आगमन से लेकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में उनके द्वारा निभाई गयी भूमिका की गहरी पड़ताल इस पुस्तक के माध्यम से की गयी है तथा अनेक भ्रामक मान्यताओं का निवारण करने का प्रयत्न किया गया है। भारतीय संविधान में रुचि रखने वालों तथा संवैधानिक विषयों के अध्येताओं के लिए इस पुस्तक की अनिवार्यता असन्दिग्ध है।