Ramchandra Shukla : kal, aaj aur kal - New Delhi Vani 2023 - 358

आचार्य शुक्ल की स्पष्ट मान्यता है कि भाव या मनोविकार अपने आप में शुभ या अशुभ नहीं होते हैं। इन भावों के नियोजन के आधार पर इनके परिणाम तय होते हैं। उनके अनुसार भावक्षेत्र अत्यन्त पवित्र क्षेत्र है। अपने निहितार्थों की पूर्ति के लिए मनुष्य जाति इसका उपयोग हमेशा से करती आयी है। ‘लोभ' सीमित रूप में मानव समाज में कटुता पैदा करने वाली वृत्ति है, वही उदात्त रूप में समाज कल्याण का औज़ार बन जाती है। ‘देश-प्रेम' को वे 'लोभ' का ही उदात्त रूप मानते हैं। - इसी पुस्तक से

9789357751711


Hindi Literature
Literature-Criticism/ Social Discourse

H 891.4308 RAM