Pratinidhi kahaniyan
- New Delhi Vani 2024
- 154p.
सही साहित्य की प्रामाणिकता का आधार किसी भी लेखक की अपनी सोच होती है, अपना महसूसना होता है। मेरी कहानियों में आत्मगत भयावहता का सामना किया गया है। हमारे अन्दर एक डार्करूम है जहाँ चित्र के चित्र अँधेरे में सुप्त पड़े रहते हैं। जब कोई जाग्रत क्षण इन नेगेटिव्ज़ को छू लेता है तो जन्म होता है चित्र-दृश्यों का, कहानियों का। ज़िन्दगी में जो अवांछनीय क्षण आ जाते हैं, बीत भी जाते हैं, लेकिन अपने पीछे छोड़ जाते हैं आत्मा के अन्दर एक काला स्याह जंगल। जब बाहर का सत्य अन्दर के सत्य से जुड़ जाता है तब मेरी कहानियाँ जन्म लेती हैं। यह बात पढ़कर शायद 'कुछ लोगों' को तकलीफ़ हो, लेकिन मुझे मानने में कोई हिचक नहीं कि सबसे पहले राजेन्द्र यादव ने मेरी इस 'अन्दर उग आये' जंगल की धारणा को प्रामाणिक महसूस किया और मेरा पहला कहानी-संग्रह 'अश्वारोही' छापा, वह भी बिना पैसे लिये। यह दूसरी बात है कि ज़्यादातर वह मसख़रे का मुखौटा ओढ़े रखता है, लेकिन मेरे लिखे को पढ़ने का उसका उत्साह अब भी वैसे का वैसा है।