"Verma, Nirmal"

Dhundh Se Uthati Dhun - New Delhi Rajkamal 2024 - 279p.

‘साहित्य हमें पानी नहीं देता, वह सिर्फ़ हमें अपनी प्यास का बोध कराता है।’ निर्मल वर्मा की ये पंक्तियाँ एक ऐसे साहित्य की तरफ़ इशारा करती हैं जो स्वयं एक असीम प्यास से जन्मा हो, जो सतत हमारे साथ रहता हो, बिलकुल वैसे जैसे हमारे अस्तित्व के साथ हमारी साँस। ‘धुंध से उठती धुन’ सृजनात्मकता की ऐसी ही अबाध मौजूदगी से उपजी रचना है। अलग-अलग समय पर लिखी डायरियों, यात्रा-टीपों, पढ़े हुए लेखकों और पुस्तकों की स्मृतियों का यह कोलाज अपनी सम्पूर्णता में एक ऐसी दुनिया की रचना करता है जहाँ निर्मल जी हमें गद्यकार-कथाकार के रूप में भी दिखाई देते हैं, चिन्तक, यात्री और मनीषी के रूप में भी। वह दुनिया जो उनकी कहानियों की ओट से हमें आमंत्रित करती जान पड़ती है, यहाँ हमें साकार मिल जाती है। यहाँ एकत्रित टीपों को निर्मल जी स्वयं मन की यात्राओं का वृत्तान्त कहते हैं—‘अन्त:प्रक्रियाओं का लेखा-जोखा।’ निर्मल वर्मा के दो बहुचर्चित रिपोर्ताज ‘सिंगरौली, जहाँ कोई वापसी नहीं’ और ‘सुलगती टहनी’ भी इस पुस्तक में संकलित हैं, जो मूलत: डायरी की तरह ही लिखे गए थे और भारतीय समाज-संस्कृति के समकालीन संकट को दो विपरीत दिशाओं से छूते हैं।

9789360863258


Diaries, Notes
Journals, Travel memoirs

H VER N