1947 ke baad Bharat: kuchh smaran, kuchh tippaniyan
- New Delhi Vani 2024
- 107p.
"आज़ादी के पचहत्तर साल बाद - भारत के सामने कठोर प्रश्न उपस्थित हैं। सबसे ज़्यादा परेशान करने वाले सवाल हैं रोज़गार और जीवनयापन के; लेकिन हमारे लोकतन्त्र का सवाल अगर उससे ज़्यादा नहीं तो उतना ही आवश्यक है। जब भारत को आज़ादी मिली और उसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की राह पर क़दम बढ़ाया तो जनता ने अपने नेताओं और चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से एक ऐसा राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा जो समता, स्वतन्त्रता और बन्धुत्व के आदर्शों पर खड़ा हो। एक सघन आबादी वाले देश जहाँ पर भारी निरक्षरता और ग़रीबी हो और सिर चकरा देने की तादाद में धर्म, जाति, भाषा की विविधता और आन्तरिक टकराव का इतिहास हो, वहाँ जब यह प्रयोग सफल लगने लगा तो इससे न सिर्फ़ दुनिया के तमाम सदस्यों को हैरानी हुई बल्कि कई देशों में आशाएँ भी जगीं । लेकिन कुछ वर्षों से यह आदर्श आघात सह रहे हैं। इस किताब में लेखक ने उन प्रमुख मुद्दों पर विचार किया है जिसका सामना भारत को करना है। वे प्रश्न करते हैं कि क्या भारत का भविष्य | एक उत्पीड़ित मन के प्रतिशोध भाव से संचालित होने जा रहा है जो कि हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थकों पर हावी है? क्योंकि भारत ऐसा देश है जहाँ पर अर्थव्यवस्था, राजनीति, मीडिया, संस्कृति और अन्य क्षेत्रों पर हिन्दू ही हावी हैं इसलिए ऐसा हो रहा है।