Mukhopadhyay, Subhash

Agnigrabha (Bangla Poems) - 3rd ed. - New Delhi Vani 2023 - 264p. - Lokodya granthamala 546 .

अग्निगर्भ - आधी सदी से भी अधिक लम्बी और अविचल रचना यात्रा के दौरान बांग्ला कवि सुभाष अपने समकालीनों में ही नहीं, परवर्ती युवा पीढ़ियों के लिए भी कविता के जीवन्त प्रतीक और प्रतिमान बने रहे। पदातिक के बाद अग्निकोण (1948), चिरकुट (1950), फुलफुटुक (1961), जत दुरेई जाय (1962), काल मधुमास (1969), छेले गेछे बने (1972), एकटु पा चालिए, भाई (1979), जलसइते (1981), जा रे कागजेर नौकों (1989) तक की कविताएँ कवि सुभाष दा के साथ इस तरह जुड़ गयीं मानो ये जीवन का अनुषंग या उपक्रम नहीं, बल्कि अनिवार्य अंग हैं। साहित्य अकादेमी पुरस्कार, अफ्रो-एशियन लोटस पुरस्कार (1977), कुमारान आशान पुरस्कार (1982), आनन्द पुरस्कार (1984), कबीर सम्मान (1987) आदि से अलंकृत सुभाष दा ने कविता के अलावा कथा-साहित्य, यात्रा-वृत्त, बाल साहित्य, और अनुवाद विधा में भी पर्याप्त लेखन कार्य किया है। सुभाष मुखोपाध्याय के विभिन्न कविता संकलनों से प्रस्तुत संकलन के लिए चयन करते हुए इसके सम्पादक और अनुवादक डॉ. रणजीत साहा ने कवि की प्रिय एवं प्रतिनिधि कविताओं को वरीयता दी है। प्रस्तुत संकलन का तीसरा संस्करण इस बात का प्रमाण है कि सुभाष दा न केवल बांग्ला भाषाभाषियों के बीच बल्कि हिन्दी पाठकों के बीच भी पर्याय समादृत हैं। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1991) से सम्मानित सुभाष दा की कविताओं का एकमात्र प्रतिनिधि संकलन | 'भारतीय ज्ञानपीठ की गरिमापूर्ण प्रस्तुति ।

9788119014736


Hindi Litertaure; Poems- Bangla; Saha, Ranjeet Tr.; Jnanpith awarded author

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