यह उपन्यास बातता है कि आजकल के नौजवानों में लगभग नब्बे प्रतिशत, असुरक्षा के शिकार हैं। पूरी की पूरी एक पीढ़ी यह महसूस करती है कि राज्य, राष्ट्र नौकरी, कल-कारखाने, स्वनियुक्ति के कामकाज, विविध योजनाओं में उनके लिए कहीं, कोई जगह नहीं है। वे लोग निरे फालतू हैं। अगर वे न भी पैदा हुए होते, तो चल जाता। सिस्टम ने उन्हें ख़ारिज कर दिया है। अमिय की पीढ़ी यही महसूस करती है। पिछली पीढ़ी उन्हें समझ ही नहीं पाई। यह सड़े-गले, हिंस्र-निर्मम सिस्टम ने उन लोगों को ख़ारिज़ कर दिया है। प्रतिवाद की आवाज़ मानो विद्रोह की आवाज हो। विद्रोह का अर्थ ही है, जड़ से समूल नष्ट कर दो।