हैमलेट के सामने प्रश्न उपस्थित होता है कि किया जाये या नहीं किया जाये। इसी बात की ऊहापोह में सारा समय बीत जाता है और कर्तव्य-विमूढ़ की स्थिति बनी रहती है और अन्त तक यह पहेली हल ही नहीं हो पाती। बस यही है हैमलेट के चरित्र की विलक्षणता । सारा जीवन बीत गया पर समस्या ज्यों की त्यों बनी रही। ऐसी स्थिति में तो मनुष्य विवश हो जाता है और यहाँ तक कि आत्म-हत्या की बात भी मन में बार-बार उठती रहती है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है