Prayojanmulak Hindi
- 1st ed.
- New Delhi Vani 1987
- 190 p.
प्रस्तुत पुस्तक में प्रयोजनमूलक हिन्दी के अर्थ, आशय, स्वरूप तथा प्रयोग- क्षेत्र को स्पष्ट किया गया है और राजभाषा के रूप में हिन्दी के निरन्तर संघर्ष और उसकी अन्तिम परिणति को भी ऐतिहासिक सन्दर्भ में विश्लेषित किया है।