Tiwari, Bholanath

Shabdo ka jeevan - 2nd r - New Delhi Rajkamal 1977 - 134 p.

शब्दों का निर्माण, शब्दों के अर्थ और उनकी ध्वनियों में परिवर्तन तथा शब्दों के आदान-प्रदान आदि से सम्बद्ध भाषावैज्ञानिक तथ्य प्रायः नीरस और समझने-समझाने की दृष्टि से दुरूह समझे जाते हैं । प्रस्तुत पुस्तक में सुप्रसिद्ध भाषाशास्त्री डा० भोलानाथ तिवारी ने अपनी सरल शैली में इन्हीं तथ्यों को लेकर हिन्दी में प्रथम बार भाषावैज्ञानिक ललित निबन्ध लिखने का सफल प्रयोग किया है । तिवारीजी की कल्पना ने इन ललित निबन्धों में शब्दों को मनुष्य की तरह ही जनमते-मरते, उलटते-पलटते, बोलते चालते, मोटाते-दुबलाते तथा उठते-गिरते दिखाया है । सामान्य पाठकों के लिए यह ललित निबन्धों का संग्रह है, तो विद्यार्थियों के लिए भाषाविज्ञान को अत्यन्त मनोरंजक शैली में हृदयंगम करानेवाली पुस्तक ।

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