Shirivastav, Shivdayal Parmeshwardayal

Samvidhan aur vidihiya - Bhopal Madhya Pradesh Hindi academy 1974 - 792p.

स्वतंत्र चिन्तन और सृजनात्मक प्रतिभा का विकास सच्चे अर्थ में तब तक सम्भव नहीं जब तक सभी स्तरों पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा नहीं दी जाती भारतीय मानस और मेधा अपने परिवेश और आवश्यकताओं की अनुरूपता में तब तक नयी दिशाओं का संधान नहीं कर सकेगी जब तक यह विदेशी भाषा में अन्तनिहित संस्कारों से मुक्त नहीं होती। राष्ट्रीय चरित्र का भावबोध अपनी भाषाथों के माध्यम से निश्चय ही अधिक प्रभावशाली हो सकेगा।

इस तथ्य को अनुभव के स्तर पर स्वीकार करने के बाद से भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने के सतत प्रयास किये जाते रहे हैं। इनकी सफलता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बी--- पाठ्य-पुस्तकों का अभाव। इस अभाव को दूर करने के लिए एक विशाल योजना और दृढ निश्चय की आवश्यकता थी। भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने इसी उद्देश्य से विश्व विद्यालयीन ग्रन्थ-निर्माण योजना के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य को एक-एक करोड़ रु० का वित्तीय अनुदान देकर अकादमियों की स्थापना की प्रेरणा दी। इसी क्रम में मध्यप्रदेश में भी जुलाई १६६६ में हिन्दी ग्रन्थ एकादमी की स्थापना हुई ।

विगत चार वर्षों में अकादमी ने विज्ञान, तकनीकी, कृषि तथा मानविकी के विभिन्न विषयों में डेढ़ सौ से भी अधिक मौलिक तथा अनुवाद-ग्रन्थ प्रकाशित किये हैं। इनमें स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थियों की आवश्यकता एवं पाठ्यक्रम की अनुरूपता का ध्यान रखा गया है। प्रकाशनों में केन्द्रीय शब्दावली प्रयोग द्वारा तैयार की गयी मानक शब्दावली समान रूप से प्रयुक्त हुई है।


Constitution and the law

H 342 SHI