विश्व भर के शिक्षाशास्त्री इस पर एकमत हैं कि शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा ही होनी चाहिये। विद्यार्थी के लिए मातृभाषा सहज संप्रेषणीय एवं विषय को गहराई तक जानने में सहयोगी होती है। शिक्षा के माध्यम के रूप में दूसरी भाषा, छात्र के मस्तिष्क पर अतिरिक्त दबाव का काम करती है, जिससे वह विषय-वस्तु पर पर्याप्त ध्यान दे पाने के अपनी सुजनात्मक ऊर्जा काय भाषा ज्ञान बढ़ाने में करता है।
स्कूली स्तर पर शासन ने मध्यप्रदेश में मातृभाषा हिन्दी को माध्यम के रूप में स्थापित कर दिया है। किन्तु उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी होने से, मँहगी अंग्रेजी शिक्षा पाये छात्र तो लाभान्वित होते रहे, लेकिन मातृभाषा के माध्यम से उच्चतर माध्यम से उच्चतर माध्यमिक परीक्षा पास छात्र पिछड़ते रहे स्वाभाविक रूप से विकास का मार्ग उनके लिए प्रशस्त होता गया, जो साधन सम्पन्न थे इस प्रकार भाषायी विसंगति के कारण समाज में वर्गभेद की एक नयी श्रृंखला ने जड़ें जमाना प्रारम्भ कर दी
सुखद है कि समय रहते केन्द्र सरकार ने इस ओर ध्यान दिया और उच्च शिक्षा सर्वजन को सुलभ कराने के लिए मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया। माध्यम परिवर्तन में सबसे बड़ी बाधा थी तक नीकी शब्दावली और पाठ्य-ग्रन्थों का अभाव । वैज्ञानिक तकनीकी पदावली की समस्या का निराकरण किया तथा मानक शब्दावली तैयार की जिससे पाठ्यक्रमों की भाषा में एकरूपता रह सके । बाद में केन्द्र सरकार ने प्रत्येक प्रान्त को एक-एक करोड़ रुपये की राशी देकर पाठ्य ग्रन्थों के अभाव को दूर करने के लिए राज्य शासन के सहयोग से इन अकादमियों की स्थापना की ।
केन्द्र प्रवर्तित इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी ने विगत 10 वर्षों में विज्ञान, इंजीनियरी, आयुर्विज्ञान, कृषि, विधि, कला और मानविकी संकायों के विविध 25 विषयों के लिए स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरीय लगभग 300 ग्रन्थों का निर्माण और प्रचलन कराया है।