'द्वी मिन्टौ मौन' युवा कवि आशीष सुन्दरियाल को पहलो कविता संग्रह छ, जै मा आज की गढ़वाली युवा कविता की अंद्वार दिखे सकेंद। अपणो राज हूणा का बावजूद घर पहाड़ मा अंधाघोर, अभावग्रस्त जीवन अर विनाशकारी पलायन की मार तथा भैर प्रवास मा उपेक्षित अपछ्याणक अर नित तनावग्रस्त रहन-सहन का दबाव से समाज मा घार बूण द्विया जगा एक मोहभंग की स्थिति पैदा होण लगि गे अर नवीन राजनीतिक-आर्थिक परिस्थित्यं मा अपणा अस्तित्व, पछ्याण व बेहतर जीवन की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति का वास्ता संजेती साधनु की नई तलाश शुरू होण लगि गे। भाषा-साहित्य अर संस्कृति का प्रति विशेष जागरूकता उफरण लगि गे। विशेष रूप से पढ्यां लिख्यां वर्ग मा अपणी भाषा तैं पूर्ण भाषा मने जावा, को नयो आत्मविश्वास पैदा होण लगि गे। भाषा अर संस्कृति को सवाल राजनीतिक परिदृश्य मा प्रमुखता हासिल करण लगि गे।