Kitne rang ki baatein
- Dehradun Samay sakshay 2017
- 128 p.
नूतन डिमरी गैरोला की ये कविताएं इतने अटपटे स्वर में बोलती हैं कि समय के मुहावरों से अलग कोई आवाज सुनाई देने लगती है। सभी कुछ गढ़ डालने की इच्छाओं के बीच यह एक सच्ची आवाज अनगढ़ रह जाने की सुनी जानी चाहिए। सामान्य जीवन के घटनाक्रम यहां हैं, किंचित गूढ़ पर उतनी ही सहजता से कह दिए जाते। वैसी ही इच्छाएं भी जितनी मानवीय, उतने ही अमानवीय तरीके से समाज और संस्कारों में तय कर दिए गए, उनके अंत। उनकी कविता "सच की आवाजें हमें बहुत बोलने वालों के इलाके में हमारी ही हत्याओं के दृश्य दिखाती है। यह एक समकालीन प्रसंग है, जिसके राजनीतिक आशय किसी छुपे नहीं रह सके हैं। बातों का वह खेल जो हमारे सार्वजनिक जीवन में है, नूतन उसकी विस्तृत पड़ताल करती है। जरूरी नहीं कि राजनीति पर कविता लिखी जाए. कविता लिखना खुद मनुष्यता के पक्ष में एक राजनीतिक कार्रवाई है।
हैरत की बात है कि नूतन की कविता में अचानक अमीबा जैसा जीव चला आता है, वह भी प्रेम के सन्दर्भ के साथ। उनकी कितनी ही कविताएं हैं, जिनमें प्रेम अनायास शामिल है। प्रेम के होने का कोई उद्घोष यहां नहीं है, न ही प्रेम को लेकर कोई अतिरेक ही बरता गया है वह उतना हो और वैसा ही है, जैसा एक आम मनुष्य जीवन में होता है। इन कविताओं में प्रेम जहां भी है, आवेग नहीं, गरिमा के साथ है। "वह अखबार पढ़ता रहा" जैसी लम्बी कविता भी उसी प्रेम की वजह से सम्भव हुई। और सम्भव हुआ है उपालम्भ-उपालम्भ की गरिमा भी अब बीते जमाने की बात लगती है, खुशी है कि नूतन डिमरी गैरोला की कविता में वह भरपूर है।
ये कविताएं जैसे, अपनी कवि का आईना है। संवादों का एक संसार, तो अपने सम्बोधन में कुछ खामोश, मितव्ययी लेकिन बेहद साफ दिखाई देती है। मुझे निराला का लिखा याद आता है कि "भर गया है जहर से, संसार सारा हार खाकर, देखते हैं लोग लोगों की, सही परिचय न पाकर ।" नूतन की कविताएं ठीक उसी छीजती और गलत हुई जाती परिचय परम्परा को मजबूत और सही दिशा में ले जाती कविताएं है।