Uttarakhand ka jan itihas lok sanskriti evam samaj
- 2nd ed.
- Dehradun Samay Sakshya 2019
- 490 p.
उत्तराखंड का जन इतिहास, लोक संस्कृति एवं समाज' का पहला संस्करण 2017 में समय साक्ष्य द्वारा प्रकाशित किया गया। यह पुस्तक विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं प्रशासनिक सेवाओं के अभ्यर्थियों और शिक्षकों के बीच बेहद लोकप्रिय रही। हाल के वर्षों में इतिहास लेखन में निरंतर नए प्रयोग होते रहे हैं, इन्हीं नए प्रयोगों में से एक प्रभावशाली प्रयोग है 'सामाजिक इतिहास' का प्रयोग। सामाजिक इतिहास से आशय एक नए तरह के सम्पूर्ण इतिहास से है, जिसके अंतर्गत आम आदमी का इतिहास लिखा जाता है। फ्रांस में 'अनाल्स स्कूल' अमेरिका में 'नया इतिहास' एवं ब्रिटेन में 'सामाजिक इतिहास' के रूप में आरम्भ किये गए अभिनव प्रयोगों का मुख्य ध्येय कहीं न कहीं आम आदमी का इतिहास या जन इतिहास लिखना रहा है।
उत्तराखंड का जन इतिहास, लोक संस्कृति एवं समाज में अधिकांश शोध पत्रों का सरोकार पशुचारण एवं कृषि प्रधान समाजों से है, इस तरह की अर्थव्यवस्था अतिपिछड़ी मानी जाती रही है लेकिन उत्तराखंड की आत्मा इन्हीं समाजों में तलाशी जा सकती है। उत्तराखंड के अन्य भागों के अतिरिक्त तीन विशिष्ट सांस्कृतिक क्षेत्रों, जौनपुर, जौनसार बावर एवं रंवाई की संस्कृति का अभिलेखीकरण विद्वतजनों द्वारा इस पुस्तक में किया गया है। मध्यकालीन समय में पंवार वंश एवं चन्द राजवंशों के नाथपंथी गुरुओं के साथ किस तरह के रिश्ते रहे? कैसे नाथपंथी गुरुओं ने उत्तराखंड के आम जनमानस पर अपना प्रभाव कायम रखा? उक्त बिंदुओं को सही परिप्रेक्ष्य में डॉ. विष्णुदत्त कुकरेती ने अपने लेख 'गढ़वाल के लोकदेवताओं पर नाथपंथी प्रभाव: एक सामाजिक सांस्कृतिक अध्ययन' में भलीभांति उजागर किया है।