1970-75 के बीच जिन कवियों ने लिखना प्रारम्भ किया था, जो 1980 के आसपास हिन्दी में स्थापित हुए और आज जो वरिष्ठ पीढ़ी है, उनमें मंगलेश डबराल प्रमुख हैं। अभी तक इनकी कविता-यात्रा में छः संग्रह प्रकाशित हुए हैं- 'पहाड़ पर लालटेन', 'घर का रास्ता', 'हम जो देखते हैं', 'आवाज़ भी एक जगह है', 'नये युग में शत्रु' और 'स्मृति एक दूसरा समय है। में इसके अतिरिक्त इनकी पाँच काव्येत्तर पुस्तकें भी हैं-'एक बार आयोबा', 'एक सड़क एक जगह', 'लेखक की रोटी', 'कवि का अकेलापन और 'उपकथन'। इन्होंने कुछ अनुवाद कार्य भी किये हैं।
कविता पर बात करते हुए हम अकसर कई प्रकार की दुविधाओं का सामना करते हैं—पाठक के रूप में। कविता के लिखे जाने और बाद में पाठक द्वारा उसे पढ़े जाने के तनाव या द्वंद्वात्मकता में ही यह दुविधा छिपी होती है। ऐसा समयांतराल के कारण होता है, विचारों और विचारधाराओं में आए अंतराल के कारण होता है, कवि की संश्लिष्ट अनुभूति और अभिव्यक्ति तथा पाठक की रेसिप्टिव्नेस के बीच के अन्तराल के कारण होता है, हमारी संवेदनात्मक संरचनाओं में अन्तर के कारण होता है। यह दुविधा तब और बड़ी हो जाती है, जब कवि मंगलेश डबराल हों, क्योंकि मंगलेश जी की कविताएँ न सपाट हैं, न अभिधार्थो के सहारे हैं, न एकायामी हैं, न विचारविहीन हैं, न कालविहीन, न कलाविहीन, न भावविहीन।