आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति की खास विशेषता है। वैदिक संस्कृति का केन्द्र कहा जाने वाला वाग्वर प्रदेश भी उक्त विशेषता से सरोवार रहा है। इसे ‘लोढ़ी काशी' और धर्मपुरी भी कहा जाता है। यहां संस्कृत अध्ययन अध्यापन की विशेष परम्परा रही है। घोटिया आम्बा महाभारत कालीन प्रसिद्ध स्थान है। रामकुण्ड, भीमकुण्ड, बेणेश्वर, अरथूना आदि पौराणिक स्थल धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखते हैं। वाग्बर प्रदेश माही नदी द्वारा सीचित, हरा-भरा है। यहाँ सोम और जाखम नदियाँ भी क्षेत्र को हरा-भरा करने में तत्पर रहती है। माही बांध एवं जाखम बांध का क्षेत्र के विकास में विशेष योगदान रहा है। यह प्रदेश अब जनजातीय उपयोजना क्षेत्र में परिगणित है। यहां अब 70 प्रतिशत जनसंख्या भीलों की है। अब यह भील बहुल क्षेत्र है। यहाँ की सांस्कृतिक परम्परा का प्रभाव भीलों पर अत्यधिक पाया जाता है। भील लोग वचन के पक्के, दूसरों का आदर करने वाले, मानवतावादी दृष्टिकोण से युक्त हैं। इनका अपना एक दार्शनिक दृष्टिकोण है वे मानते हैं कि प्रकृति सर्वव्यापी एक ईश्वर का व्यक्त रूप है। भील सूक्ष्मातिसूक्ष्म परमात्मा में आस्था रखते हैं। उनके मत में जीवात्मा कभी समाप्त नहीं होती है। इसीकारण अपने प्रियजनों की मृत्यु के बाद 'सीरे' आदि स्थापित करते है। समय-समय पर सीरा-पूजन किया जाता है। अपरिग्रह, समर्पण, त्याग, सेवाभाव एवं सदैव प्रसन्न रहना आदि इनकी खास विशेषताएँ है।