‘रेणु की तलाश' न तो रेणु का जीवन-वृत्तान्त है न संस्मरण न समीक्षा; अलबत्ता इस किताब में इन तीनों विधाओं के तत्त्व मौजूद हैं। इस पुस्तक के लेखक भारत यायावर, रेणु की खोज को, अपने जीवन की 'परम साधना और सार्थकता' मानते हैं पर यह शोध-कार्य किस्म की शुष्क खोज नहीं है। यह एक कथा-लेखक को उसके अंचल में, उसके परिवेश में, उसके पात्रों और उसके अनुभव जगत् के बीच खोजना है। यह रेणु के कथा-स्रोत, उनकी अन्तःप्रेरणाओं और उनकी रचना प्रक्रिया की तलाश है। यह रेणु को रेणु बनते हुए और उनकी रचनाओं को रचे जाते हुए देखना है। इस है क्रम में जहाँ रेणु के बारे में लोगों से सुने हुए संस्मरण पाठक को बाँधे रखते हैं वहीं 'चम्बल घाटी में डाकुओं के बीच मैला आँचल' जैसा अज्ञात या अल्पज्ञात प्रसंग रोमांचित करता है।
रेणुमय होने के बावजूद इस पुस्तक में कुछ और भी छोटे-छोटे तलस्पर्शी लेख हैं, जैसे 'साहित्य और राजनीति', 'साहित्य का व्यवसायीकरण', 'गांधी और जयप्रकाश' आदि; और निराला, दिनकर, अज्ञेय, नामवर सिंह आदि को श्रद्धा-निवेदित टिप्पणियाँ हैं। जाहिर है, यह पुस्तक रेणु की तलाश होते हुए भी वहीं तक सीमित नहीं रहती।