Verma, Vrindavanlal.

Amarbel - Delhi Prabhat Prakashan 2014 - 320 p. - Vrindavanlal Verma Granthamaala : 7 .

अध्यात्मवाद? अध्यात्मवाद न?' ' न भाई, बहस के लिए नहीं लिवा लाया हूँ । बहस ही करनी होती तो पैवलाव नाम के तुम्हारे मान्य विदेशी से शुरू करता, जिसके सिद्धांत प्राणी विज्ञान शास्त्र में तो सर्वमान्य हैं-' 'परंतु.' 'परंतु मनोविज्ञान के क्षेत्र में संदेह उत्पन्न करनेवाले. 'जैसे?' 'ऐसे-वेद शब्द का चाहे लोग अर्थ तक न जानते हों, परंतु है वह इन्हें मान्य, उसके दो-तीन वाक्य समझाकर रटा दो। ओंखें खुल जाएँगी और काम करते रहने की बान पड़ जाएगी। यह भी एक फॉर्मूला है, लेकिन फॉर्मूला ऑफ कंपलशन से कहीं अच्छा।' टहल हँस पड़ा, 'भौतिकवाद को हराने की अध्यात्मवाद की वही पुरानी चाल। ढोंग की पूजा कराने का ढंग!' 'सो नहीं है। साथ मिलकर चलो, मिलकर बोलो, मिलकर पदार्थों का भोग करो-यह सब क्या ढोंग है? अगर समाज हमारे-तुम्हारे चिल्लाने से नहीं जागता तो उसके कान पर शंख क्यों न फूकें? लेकिन तुम्हें यहाँ का शंख पसंद नहीं है-बाहर की बिगुल अच्छी लगती है।'

9788173150500


Hindi novel

H VER