Purbi Bayar /
by Sanjeev
- Noida, Setu prakashan 2021.
- 200 p.
पुरबिया के जनक माने जाने वाले महेन्दर मिसिर अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती पुरुष बन गये थे। इन किंवदन्तियों में अनेक सच्ची-झूठी घटनाएँ हैं, अफवाह हैं, सच्चाई है और भी बहुत कुछ... साथ ही है हमारा सन्निकट इतिहास। ऐसे ऐतिहासिक चरित्रों में, जहाँ इतिहास, अफवाह, झूठ-सच सब घुलमिल जाते हैं, उन्हें अपनी रचना का आधार बनाना एक टेढ़ी खीर है साथ ही बेहद जोखिम भरा भी उपन्यासकार ने 'सत्य के गिर्द लताओं की तरह लिपटी अनेक कथाओं में अक्सर उलझती' कथा को विवेकपूर्ण तार्किकता से बुना है। इस कथा में महेन्दर के साथ दूसरे चरित्र भी बहुत शक्ति और लेखकीय विश्वास के साथ आए हैं।
कथाकार संजीव ने 'पुरबी बयार' में इस कठिन और चुनौतीपूर्ण कार्य को बेहद संजीदगी और अनायासता से सम्भव किया है। कथा की सम्भाव्यता का कारण भाषा का अविकल प्रवाह है। खड़ीबोली भोजपुरी लहजे से सम्पृक्त होकर कथा परिवेश को और व्यंजक बना देती है। पाठक शुरू से आखिर तक भाषा और कथा रस में आप्लावित रहता है।