बीसवीं शताब्दी में लंबी कविता का माध्यम आधुनिक युग की एक ज़रूरत के तौर पर उभरा है। इस ज़रूरत का एहसास शताब्दी के शुरू में ही हो गया था। आधुनिकता के दबाव से जैसे-जैसे मूल्यगत संक्रमण की प्रक्रिया तेज़ होती गयी और सामाजिक ढाँचे में तब्दीली का आभास होता गया, वैसे-वैसे कविता के चरित्र में, कविता रचने के प्रकारों में, रूप-विधान और संरचना में परिवर्तन आने लगे। ऐसे में लंबी कविताओं को एक ज़रूरी काव्य माध्यम के तौर पर उभर आने में संदेह नहीं रह जाता। प्रारंभ से आज तक लंबी कविताओं के विकास क्रम को सामाजिक स्थितियों के संदर्भ में देखने से कुछ रोचक तथ्यों एवं निष्कर्षो तक पहुँचा जा सकता है। एक लंबी कालावधि में लंबी-कविता ने अपनी आन्तरिक शक्ति के बल पर विशिष्ट और महत्वपूर्ण कविता के रूप में प्रतिष्ठा अर्जित की है। एक अलग तरह के इस चुनौतिपूर्ण काव्य माध्यम को कवियों, पाठकों और आलोचकों द्वारा स्वीकृति मिली है जिस से लंबी कविता आज रचना और आलोचना के केन्द्र में आ गयी है। अनन्त संभावनाओं वाले इस काव्य माध्यम ने उत्तरोतर अपनी साख बनायी है। ध्यान दीजिए, पंत, प्रसाद, निराला की लंबी कविताओं से लेकर बीसवीं शताब्दी के अन्त की कविताओं ने प्रयोगों की अनोखी शृंखलाओं का तेज इसे प्रदान किया है। इसे आप एक शताब्दी में लिखी गयी लंबी कविताओं का इतिहास भी कह सकते हैं। इन्हें आधार बनाकर लंबी कविता ने स्मृति और इतिहास का काव्यात्मक ही नहीं, सामाजिक-सांस्कृतिक लक्ष्य भी प्रस्तुत किया है। इन्हें लेकर लंबी कविता की संवेदना, संरचना और काव्य-भाषा का एक ग्रॉफ तैयार किया जा सकता है।