पत्रकार पीयूष बबेले ने नेहरू को लेकर फैलाए जा चुके अनेक मिथ्या प्रकरणों के इस दौर में नेहरू के सत्य को क़ायम करने की कोशिश की है। पीयूष की यह किताब इस मायने में एक ज़रूरी हस्तक्षेप है। लाखों लोगों ने बिना किसी तथ्य के नेहरू के बारे में ग़लत ही सही मगर जान लिया है। जिस नेहरू को उनकी ही विरासत के लोगों ने छोड़ दिया था, उस नेहरू को बदनाम करने वालों ने फिर से जनमानस में क़ायम कर दिया है। अफ़सोस कि वह सही नेहरू नहीं है। नेहरू के नाम पर लीपापोती करने वालों ने ग़लती कर दी। इतना झूठ फैला दिया कि अब सही नेहरू की ललक जागेगी। इसी संदर्भ में यह किताब एक सही वक़्त में आपके हाथों में है। अच्छी बात यह है कि हिन्दी में यह काम हुआ है।