Fox, Robin

Natedari ewam viwah/ by Robin Fox ; edited by Ramanujlal Shrivastav ; translated by Ramkrishan Vajpayee - 1st ed. - Bhopal, Madhya Pradesh granth academy 1973 - 284 p.

सृष्टि के आदिकाल से जिन बातों ने व्यक्तियों को एक सूत्र में बाँधने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है वे हैं समान संरक्षात्मक और आर्थिक हित । सम्भवतः सुरक्षा की भावना ने ही पुत्र को पिता से और पिता को पुत्र से जोड़ा होगा। सामूहिक सुरक्षा की भावना परिवार के मूल में है। व्यापक तौर पर देखें तो आर्थिक हित भी सुरक्षा में अन्तनिविष्ट हो जाते हैं। धीरे-धीरे कई परिवार इकट्ठे हुए, कबीले बने; जाति, राष्ट्र और ऐसी ही छोटे-बड़े परिमाण की अनेकों संस्थाएँ निर्मित हुई जिनका आकार तत्कालीन आवश्यकताओं और भौगोलिक सीमाओं के साथ घटता बढ़ता गया ।

जिस प्रकार पदार्थों में पर्त के भीतर पतं होते हैं उसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में भी सम्बन्ध के भीतर सम्बन्ध की तहें होती हैं; उदाहरणार्थ, राष्ट्र के भीतर व्यक्ति स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है, किन्तु सुरक्षा की यह आवश्यकता इतनी बड़ी नहीं है कि वह अपने को पूर्णतः उसमें समाहित कर दे । वह देखता है कि उसके राज्य के हित में उसका और भी अधिक हित है तो वह राष्ट्र की अपेक्षा राज्य के प्रति अधिक निष्ठावान बन जाता है। राज्य के अन्तर्गत समान भाषा, धर्म, जाति आदि के बीच वह स्वयं को अधिक सुरक्षित अनुभव करता है। इसलिए वह उन्हें अपने और अधिक समीप समझने लगता है और यह सीमा सिकुड़ते सिकुड़ते नातेदारी तक आ पहुँचती है। व्यक्ति के सामाजिक और नैतिक हित एवं प्रतिष्ठा नातेदारी में आकर निश्चित विश्राम पाते हैं। यह वह रूप है जो व्यक्ति के जीवन में कभी नहीं टूटता। व्यक्ति की राष्ट्रीयता बदल जाती है, प्रदेश बदलता है, धर्म भी बदल जाता है; किन्तु नातेदारी स्थिर रहती है। वह रक्त का बन्धन है इसलिए अधिक से अधिक सभ्य जातियों से लेकर असभ्यतम जातियों तक में बिरादरी का बन्धन सबसे अधिक पुष्ट एवं विश्वसनीय माना जाता है ।

और बिरादरी का मूल है समान यौन सम्बन्ध । आर्थिक हित को छोड़कर दूसरी जो वस्तु जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है वह है योन सम्बन्ध। इस पर मनुष्य का भी बस नहीं है। आकर्षण विवाह में, विवाह सम्मान में और सन्तान फिर विवाह बौर सन्तान में विरादरी की नयी-नयी सीमाएँ बनाते चलते हैं। कभी-कभी यौन सम्बन्धों अर्थात विवाह के साथ अन्य भौतिक भी जुड़ जाते हैं। यद्यपि सदा ऐसा नहीं होता। इसलिए बिरादरी और वैवाहिक सम्बन्धों का भी नियमन करते हैं। हर बिरादरी वा समाज का एक विवाह शास्त्र होता है। जो जाति जितनी अधिक अप्रबुद्ध होती है उसका विवाह शास्त्र उतना ही कठोर और दृढ़ होता है। जातियों के इतिहास में विवाह सम्बन्धी नियमों की कठोरता और उदारता समय-समय पर बदलती भी रहती है ।

वस्तुतः नातेदारी, परिवार एवं विवाह का अध्ययन समाजशास्त्रीय दृष्टि से जितना मनोरंजक है उतना ही महत्वपूर्ण भी। रविन फॉक्स की पुस्तक "किनशिप ऐण्ड मैरिज" इस विषय पर नृतत्व-शास्त्र की दृष्टि से अच्छा प्रका डालती है । यह एक अधिकारिक प्रकाशन है और इसमें नातेदारी तथा विवाह से सम्बद्ध समस्त सिद्धान्तों का प्रथम बार इतना सरल और सुबोध विवेचन प्रस्तुत किया गया है । हिन्दी में नृतत्व शास्त्र एवं समाजशास्त्र के ग्रन्थों की संख्या नगण्य है; इसलिए इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद विशेष महत्व रखता है । डॉ० रामकृष्ण वाजपेयी द्वारा प्रस्तुत उक्त पुस्तक का यह अनुवाद न केवल सम्बन्धित विषय के विद्यार्थियों अपितु सामान्य पाठक को भी स्वेगा ।


Kinship and marriage
Robin Fox

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