Apabhransh bhasha ka vyakaran aur sahitya
- Jaipur Rajasthan Hindi Grantha Akademi 1982
- 179 p.
इन ग्रन्थों का विस्तार शोध की दिशा में हुआ है, यतः सामान्य पाठक एक सीमा तक ही इनसे लाभ पाता है। विभिन्न विश्वविद्यालयों में हिन्दी तथा प्राकृत भाषाओं के समय के विद्यार्थी प्रायः अपभ्रंश भाषा और साहित्य का भी विकल्प के रूप में अध्ययन करते हैं। उनको अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहली कठिनाई भाषा के स्वरूप के विषय में ही या खड़ी होती है। अधिकांश छात्र अपभ्रंश को प्राकृत, अवहट्ट पौर पुरानी हिन्दी से अलग नहीं कर पाते। वे अपभ्रंश का व्याकरण समझना चाहते हैं, किन्तु सूत्र- शैली में लिखा गया हेमचन्द्र का व्याकरण उनकी विवेक क्षमता का साथ नहीं दे पाता। इसी प्रकार अपभ्रंश-साहित्य का भी संक्षिप्त धौर प्रालोचनात्मक दृष्टि से लिखित परिचय किसी एक ग्रन्थ से नहीं मिल पाता है । प्रस्तुत पुस्तक की रचना छात्रों की इन सब समस्याओं को हल करने के लिए ही की गई है। इस पुस्तक में अपभ्रंश भाषा के स्वरूप को स्पष्ट करके उसके व्याकरण को हिन्दी व्याकरण के अनुसार सोदाहरण रूप में समझाया गया है। इस प्रकार अपभ्रंश का श्रीगणेश करने वाला विद्यार्थी भी भाषा और उसके व्याकरण को सरलता से समझ कर साहित्यिक कृतियों को पढ़ सकता है और उनका मर्म जान सकता है ।