Andhra Pradesh mein Hindi Basha ki samsya v.1983
- 1st ed.
- Agra, Kendriya Hindi sansthan 1983.
- 197 p.
भारतीय शिक्षा व्यवस्था में भाषा शिक्षण के क्षेत्र में मातृभाषा / प्रथम भाषा शिक्षण तथा अन्य भाषा शिक्षण (द्वितीय भाषा / विदेशी भाषा शिक्षण) के उद्देश्यों, उपस्थापनाओं, आधारों और प्रविधियों के मूलभूत अंतरों को पिछले दशक से ही समझा और स्वीकार किया जाने लगा है। इसके साथ ही इन दो प्रकार की शिक्षण स्थितियों का नियोजन और किस प्रकार किया जाये इस पर भी विचार विमर्श एवं आधारभूत शोध (मैद्धान्तिक और आनुयोगिक) प्रारम्भ हो गई है। इस प्रकार की शोध के लिए कक्षा शिक्षण के क्षेत्र से अनुमति (empirical) तथ्यों का एकत्रीकरण, वर्गीकरण और विश्वेषवश्यक है। प्रस्तुत शोध का परिणाम है।
देश के भिन्न-भिन्न अहिंदीभाषी क्षेत्रों में हिंदी शिक्षण की समस्याएँ गुणात्मक और परिमाणात्मक दोनों दृष्टियों से है यह तो सर्वविदित और सर्वमान्य है ये अन्तर भाषाओं के संरचना और शब्द-कोगी व्यतिरेकों पर वो आधार है और दृष्टिकोणों तथा माताओं पर भी निर्भर हैं इसीलिए किसी एक अहिंदी भाषा भाषी समुदाय की हिंदी शिक्षण की समस्याएँ स्वतः भाषी समुदायों पर लागू नहीं होतीं । आवश्यकता इस बात की है कि अलग-अलग समुदायों की विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए अनुभवाश्रित और तथ्यरक अध्ययन और विश्लेषण किए जाएं जिससे उन क्षेत्रों की हिंदी शिक्षण विक समस्याओं का आकलन किया जा सके ।
प्रस्तुत ग्रन्थ में आंध्र प्रदेश में हिंदी शिक्षण की समस्याओं का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। यह अध्ययन आंध्र प्रदेश में द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी के अध्यापन के सर्वेक्षण के आधार पर प्राप्त परिणामों का विश्लेषण है। अध्ययन के लिए प्रयोग में लाई गई प्रश्नावली परिशिष्ट-दो में दी गई है। अध्येता ने आंध्र प्रदेश में द्वितीय भाषा के रूप में हिंदी का अध्यापन करने वाले सरकारी और अन्य सभी प्रकार के स्कूलों से सर्वेक्षण के आधार पर सामग्री एकत्रित की है। सर्वेक्षण के आधार पर पाठ्यक्रम की प्रकृति और विषय-वस्तु, भाषा शिक्षण की विधियाँ भाषा मूल्यांकन, हिंदी सीखने से संबंधित समस्याएँ हिंदी शिक्षकों एवं छात्रों को समस्याओं पर कई महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आए हैं।