Aadhunik hindi shabd kosh c.2
- New Delhi Taxashila Prakashan 1986
- 690 p.
पिछले कुछ वर्षों में कोया निर्माण सम्बन्धी अवधारणा में अन्तर पाया है। इसके अतिरिक्त, जब से हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में घासीन हुई है, उसमें निरन्तर नई-नई शब्दावली समाहित हुई है। इस बीच नए शब्द ही नही गढ़े गए हैं, बल्कि शब्दों के निहितार्थ भी बदते हैं। पुराने कोश विशालकाय जरूर हैं, पर उनमें हिन्दी में प्रयुक्त धौर मात्र उसकी बोलियों में प्रयुक्त शब्दों की भरमार है पर उनमें नए शब्दों का समाहार भी नहीं हुआ है। इधर हिन्दी की शब्द सम्पदा में घपार विस्तार हुआ है। याधुनिक हिन्दी ज्ञान-विज्ञान को अभि व्यक्त करने में जिस प्रकार समर्थ होती जा रही है, वह धाधुनिक युग की सब से बड़ी उपलब्धि है। यह कोश हिन्दी की इसी नई आधुनिक शक्ति को उजागर करता है और इसीलिए सही धों में अपने आधुनिक स्वरूप को प्रकट करता है मोर अपनी गुणवत्ता में पुराने कोशों को पीछे छोड़ देता है ।