Muhavara-mimansa
- Patna Bihar Rastrabhasha-Parishad 1960
- 391 p.
'मुहावरा मीमांसा' नाम हो एक मुहावरेदार नाम है, जो गांधीयुग की याद दिलाता है। अरबी-संस्कृत का इतना सुन्दर मिश्रण अपने ग्रंथ के नाम में ही करने का जिसने साहस किया, वह गांधीजी का साथी रहा होगा, यह अनुमान सहज हो कोई कर लेगा । 'मीमांसा' जैसा भारी शब्द साधारण चर्चा के लिए प्रयुक्त नहीं हो सकता। मीमांसा में विषय की गंभीर चर्चा अपेक्षित होती है और यह ग्रंथ देख कर मुझे जाहिर करने में खुशी होती है कि यह प्रबंध उस शब्द को चरितार्थ करता है। श्रीप्रकाशजी ने इसमें बहुत मिहनत की है। अपना पूरा दिन उन्होंने इस काम में लगाया है। इसमें मुझे आश्चर्य नहीं; क्योंकि ओम्प्रकाशजी का वह स्वभाव ही है ये कोई काम करते हैं तो पूरे दिल से करते हैं, नहीं तो काम करते ही नहीं।