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Purvaiyan

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani Prakashan 2025 Description: 308 pISBN:
  • H 808 GUP
Subject(s): DDC classification:
  • H 808 GUP
Summary: ब्रिटेन में ‘पुरवाई' का जन्म और यात्रा विश्व में हिन्दी की यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रवासी साहित्य ने एक विषय के रूप में विकसित होकर विश्व में विशेषकर भारत के अकादमिक जगत में अपना स्थान बनाया। 'पुरवाई' उसका प्रस्थान बिन्दु भी है। 'पुरवाई' हिन्दी का एक विशिष्ट अभियान थी। यह एक व्यक्ति का रचनाकर्म नहीं था। उच्च रचनात्मक प्रतिभाओं का सामूहिक यज्ञ था जिसके पुरुषार्थ से प्रभावी और ओजस्वी वातावरण का निर्माण होना था। ब्रिटेन से डॉ. उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, तेजेन्द्र शर्मा, प्राण शर्मा, डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. गौतम सचदेव, डॉ. के.के. श्रीवास्तव, भारत से कमलेश्वर, डॉ. कन्हैयालाल नन्दन, डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. अशोक चक्रधर जैसे लोगों के योगदान के कारण 'पुरवाई' का यश दुनिया में फैलता गया और वह प्रवासी दुनिया की प्रमुख पत्रिका के रूप में उभरी। 'पुरवाई' एक दीर्घकालिक यज्ञ था। लेखन एक प्रकार का दस्तावेज़ीकरण होता है और अपने समय और परिस्थिति को मापने का पैमाना होता है। हमें उससे 90 के दशक के उत्साह, ऊर्जा और पहल की जानकारी मिलती है। परन्तु डॉ. सिंघवी के समय ब्रिटेन में हिन्दी जागरण का कार्य हुआ और ब्रिटेन में हिन्दी की लहर चल पड़ी। इस पुस्तक लेखन में महत्त्वपूर्ण बात घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि वह दृष्टि है जो अपने विवेकपूर्ण सोच से पाठकों को वैकल्पिक परिदृश्य और सोचने की दिशा देती है। कान्धार विमान अपहरण काण्ड पर 'पुरवाई' जनवरी 2000 के सम्पादकीय में पदमेश गुप्त लिखते हैं— “आतंकवाद की कालिमा में डूबी उस सदी की अन्तिम रात को ढकती हुई इस सदी की खिसियाती हुई पहली सुबह लिए कलंकित प्रकाश। यदि यात्रियों का एक भी शहीद भगत सिंह की माँ के शब्द दोहरा देता कि देश पर मर-मिटने के लिए भगवान ने मुझे और बेटे क्यों नहीं दिये और अन्याय तथा असत्य के विरुद्ध देश के ऐसे हज़ारों वासी बलिदान के लिए उपलब्ध हैं तो कहाँ के रह जाते वे अपहरणकर्ता।" ऐसे ही विचार, सूत्र और दृष्टि हमें उस समय के सम्पादकीयों और स्तम्भ-लेखन में दृष्टिगोचर होती है।
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ब्रिटेन में ‘पुरवाई' का जन्म और यात्रा विश्व में हिन्दी की यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। प्रवासी साहित्य ने एक विषय के रूप में विकसित होकर विश्व में विशेषकर भारत के अकादमिक जगत में अपना स्थान बनाया। 'पुरवाई' उसका प्रस्थान बिन्दु भी है। 'पुरवाई' हिन्दी का एक विशिष्ट अभियान थी। यह एक व्यक्ति का रचनाकर्म नहीं था। उच्च रचनात्मक प्रतिभाओं का सामूहिक यज्ञ था जिसके पुरुषार्थ से प्रभावी और ओजस्वी वातावरण का निर्माण होना था। ब्रिटेन से डॉ. उषा राजे सक्सेना, दिव्या माथुर, तेजेन्द्र शर्मा, प्राण शर्मा, डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव, डॉ. गौतम सचदेव, डॉ. के.के. श्रीवास्तव, भारत से कमलेश्वर, डॉ. कन्हैयालाल नन्दन, डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. अशोक चक्रधर जैसे लोगों के योगदान के कारण 'पुरवाई' का यश दुनिया में फैलता गया और वह प्रवासी दुनिया की प्रमुख पत्रिका के रूप में उभरी। 'पुरवाई' एक दीर्घकालिक यज्ञ था। लेखन एक प्रकार का दस्तावेज़ीकरण होता है और अपने समय और परिस्थिति को मापने का पैमाना होता है। हमें उससे 90 के दशक के उत्साह, ऊर्जा और पहल की जानकारी मिलती है। परन्तु डॉ. सिंघवी के समय ब्रिटेन में हिन्दी जागरण का कार्य हुआ और ब्रिटेन में हिन्दी की लहर चल पड़ी। इस पुस्तक लेखन में महत्त्वपूर्ण बात घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि वह दृष्टि है जो अपने विवेकपूर्ण सोच से पाठकों को वैकल्पिक परिदृश्य और सोचने की दिशा देती है। कान्धार विमान अपहरण काण्ड पर 'पुरवाई' जनवरी 2000 के सम्पादकीय में पदमेश गुप्त लिखते हैं— “आतंकवाद की कालिमा में डूबी उस सदी की अन्तिम रात को ढकती हुई इस सदी की खिसियाती हुई पहली सुबह लिए कलंकित प्रकाश। यदि यात्रियों का एक भी शहीद भगत सिंह की माँ के शब्द दोहरा देता कि देश पर मर-मिटने के लिए भगवान ने मुझे और बेटे क्यों नहीं दिये और अन्याय तथा असत्य के विरुद्ध देश के ऐसे हज़ारों वासी बलिदान के लिए उपलब्ध हैं तो कहाँ के रह जाते वे अपहरणकर्ता।" ऐसे ही विचार, सूत्र और दृष्टि हमें उस समय के सम्पादकीयों और स्तम्भ-लेखन में दृष्टिगोचर होती है।

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