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1974 : Vyavastha Parivartan Ka Andolan Aur JP Ka Sapna

By: Contributor(s): Material type: TextTextPublication details: New Delhi Vani Prakashan 2025Description: 204 pISBN:
  • 9789369442034
Subject(s): DDC classification:
  • H 954.084 KUM
Summary: ‘सन् 1974 आज़ाद भारत के लोकतान्त्रिक इतिहास का महत्त्वपूर्ण वर्ष है। इस साल अभावों से ग्रस्त, भ्रष्टाचार से त्रस्त, हिंसक मार्ग पर बढ़ते और लगातार केन्द्रीकृत होते लोकतन्त्र को सम्पन्नता, समता, अहिंसा और विकेन्द्रीकरण की ओर ले जाने के लिए देश का युवा मचल उठा था। नवनिर्माण की ऊर्जा से बेचैन युवाओं ने गुजरात से बिहार तक एक नयी क्रान्तिकारी लोकतान्त्रिक चेतना जगा दी थी। उस चेतना को गढ़ने और राह दिखाने का काम किया प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, समाजवादी और सर्वोदयी पुरोधा जयप्रकाश नारायण ने। इकहत्तर साल के जेपी ने इस युवा आन्दोलन को ‘सम्पूर्ण क्रान्ति' जैसा सैद्धान्तिक आदर्श प्रदान किया। यह आन्दोलन जब सड़कों पर उतरा तो प्रदेश से लेकर केन्द्र तक की कांग्रेस सरकारों से जा टकराया। इसकी परिणति देश में आपातकाल तक गयी। इक्कीस महीने बाद लोकतन्त्र की बहाली हुई, नयी सरकार बनी लेकिन लोकतन्त्र को विस्तार देने और व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का जेपी और छात्र युवाओं का सपना धरा रह गया। आज पचास साल बाद उस आन्दोलन, उससे निकले संगठन और उसके कामों का सिंहावलोकन आवश्यक हो गया है, क्योंकि लोकतन्त्र भारत समेत पूरी दुनिया में संकट में है। उदारीकरण और धर्म का मुखौटा लगाकर पूँजीवाद कट्टर हो चुका है। उसे अब लोकतन्त्र की ज़रूरत नहीं है। चुनाव के माध्यम से अधिनायकवादी नेतृत्व उभर रहे हैं, लोकतान्त्रिक संस्थाएँ अब कॉरपोरेट संचालित पार्टियों के द्वारा, पार्टियों के लिए और पार्टियों की संस्थाएँ होकर रह गयी हैं। कल्याणकारी राज्य झूठ का आख्यान रचने वाला एक हिंसक उपकरण बनकर रह गया है। कॉरपोरेट बहुसंख्यकवाद धर्म का चोला पहनकर लोकतन्त्र से ख़तरनाक खेल खेल रहा है। लेकिन यह बिगाड़ सरकारों के स्तर तक ही नहीं है। समाज से स्वतन्त्रता, समता और बन्धुत्व के लोकतान्त्रिक मूल्य ही ओझल हो गये हैं।’
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Books Books Gandhi Smriti Library H 954.084 KUM (Browse shelf(Opens below)) Available 181220
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‘सन् 1974 आज़ाद भारत के लोकतान्त्रिक इतिहास का महत्त्वपूर्ण वर्ष है। इस साल अभावों से ग्रस्त, भ्रष्टाचार से त्रस्त, हिंसक मार्ग पर बढ़ते और लगातार केन्द्रीकृत होते लोकतन्त्र को सम्पन्नता, समता, अहिंसा और विकेन्द्रीकरण की ओर ले जाने के लिए देश का युवा मचल उठा था। नवनिर्माण की ऊर्जा से बेचैन युवाओं ने गुजरात से बिहार तक एक नयी क्रान्तिकारी लोकतान्त्रिक चेतना जगा दी थी। उस चेतना को गढ़ने और राह दिखाने का काम किया प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी, समाजवादी और सर्वोदयी पुरोधा जयप्रकाश नारायण ने। इकहत्तर साल के जेपी ने इस युवा आन्दोलन को ‘सम्पूर्ण क्रान्ति' जैसा सैद्धान्तिक आदर्श प्रदान किया। यह आन्दोलन जब सड़कों पर उतरा तो प्रदेश से लेकर केन्द्र तक की कांग्रेस सरकारों से जा टकराया। इसकी परिणति देश में आपातकाल तक गयी। इक्कीस महीने बाद लोकतन्त्र की बहाली हुई, नयी सरकार बनी लेकिन लोकतन्त्र को विस्तार देने और व्यवस्था में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने का जेपी और छात्र युवाओं का सपना धरा रह गया। आज पचास साल बाद उस आन्दोलन, उससे निकले संगठन और उसके कामों का सिंहावलोकन आवश्यक हो गया है, क्योंकि लोकतन्त्र भारत समेत पूरी दुनिया में संकट में है। उदारीकरण और धर्म का मुखौटा लगाकर पूँजीवाद कट्टर हो चुका है। उसे अब लोकतन्त्र की ज़रूरत नहीं है। चुनाव के माध्यम से अधिनायकवादी नेतृत्व उभर रहे हैं, लोकतान्त्रिक संस्थाएँ अब कॉरपोरेट संचालित पार्टियों के द्वारा, पार्टियों के लिए और पार्टियों की संस्थाएँ होकर रह गयी हैं। कल्याणकारी राज्य झूठ का आख्यान रचने वाला एक हिंसक उपकरण बनकर रह गया है। कॉरपोरेट बहुसंख्यकवाद धर्म का चोला पहनकर लोकतन्त्र से ख़तरनाक खेल खेल रहा है। लेकिन यह बिगाड़ सरकारों के स्तर तक ही नहीं है। समाज से स्वतन्त्रता, समता और बन्धुत्व के लोकतान्त्रिक मूल्य ही ओझल हो गये हैं।’

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