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Aadivasi upeksha ki antarkatha : British hukumat se ekkiswin sadi tak

By: Material type: TextTextPublication details: New Delhi Sasta Sahitya Mandal Prakashan 2021Edition: 1st edDescription: 537 pISBN:
  • 9789390872350
Subject(s): DDC classification:
  • H 305.8 TIW
Summary: आदिवासी किसी इलाके विशेष के मूल निवासी होते हैं। उनका जीवन वन की प्रकृति के साथ लयबद्ध होता है। वे प्रकृति के साहचर्य में, उसके साथ जीते हैं, उसका संरक्षण करते हैं। प्रकृति से केवल अपनी सामान्य जरूरत भर का लेते हैं, उसे नष्ट नहीं करते। वे प्राचीन समय से चली आती अपनी जीवन पद्धति में बदलाव भी नहीं चाहते। सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य की जरूरतें बढ़ती गईं। वह प्राकृतिक संसाधनों का अधिक-से-अधिक दोहन करने लगा। विकसित समाज व्यवस्था मुख्यधारा कहलाई। यह सभ्य समाज आदिवासियों को पिछड़ा मानता और उनके विकास का दम भरता रहा है। वह चाहता रहा है कि वे भी उसके जैसे हो जाएँ और उसके इस्तेमाल की सामग्री की तरह काम आएँ। विकसित समाज आदिवासियों की भूमि का, प्राकृतिक संपदा का दोहन कर अपने जीवन को अधिकाधिक समृद्ध और आरामदेह बनाता रहा है, आदिवासियों की भूमि पर कब्जा करता रहा है। उनको मूल धारा में लाने के लिए विधिक और प्रशासनिक व्यवस्था करता रहा है। विकसित समाज का यह हस्तक्षेप आदिवासियों को असह्य प्रतीत हुआ है और इसके लिए वे समय-समय पर असंतोष व्यक्त करते रहे हैं।
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Books Books Gandhi Smriti Library H 305.8 TIW (Browse shelf(Opens below)) Available 168152
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आदिवासी किसी इलाके विशेष के मूल निवासी होते हैं। उनका जीवन वन की प्रकृति के साथ लयबद्ध होता है। वे प्रकृति के साहचर्य में, उसके साथ जीते हैं, उसका संरक्षण करते हैं। प्रकृति से केवल अपनी सामान्य जरूरत भर का लेते हैं, उसे नष्ट नहीं करते। वे प्राचीन समय से चली आती अपनी जीवन पद्धति में बदलाव भी नहीं चाहते।

सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य की जरूरतें बढ़ती गईं। वह प्राकृतिक संसाधनों का अधिक-से-अधिक दोहन करने लगा। विकसित समाज व्यवस्था मुख्यधारा कहलाई। यह सभ्य समाज आदिवासियों को पिछड़ा मानता और उनके विकास का दम भरता रहा है। वह चाहता रहा है कि वे भी उसके जैसे हो जाएँ और उसके इस्तेमाल की सामग्री की तरह काम आएँ। विकसित समाज आदिवासियों की भूमि का, प्राकृतिक संपदा का दोहन कर अपने जीवन को अधिकाधिक समृद्ध और आरामदेह बनाता रहा है, आदिवासियों की भूमि पर कब्जा करता रहा है। उनको मूल धारा में लाने के लिए विधिक और प्रशासनिक व्यवस्था करता रहा है। विकसित समाज का यह हस्तक्षेप आदिवासियों को असह्य प्रतीत हुआ है और इसके लिए वे समय-समय पर असंतोष व्यक्त करते रहे हैं।

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