Jab bhi deh hoti hun
Material type:
- 9788189303174
- H 891.43109 PAN
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 891.43109 PAN (Browse shelf(Opens below)) | Available | 168076 |
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H 891.43109 PAN Dhoomil samagra | H 891.43109 PAN Dhoomil samagra | H 891.43109 PAN Dhoomil samagra | H 891.43109 PAN Jab bhi deh hoti hun | H 891.43109 PAT Hindi saint-kavya mein yog tatva | H 891.43109 PAT Hindi ke sant kavya mein yog tattva | H 891.43109 PRA Prasad-Kavya Men Dhvani-Tattva |
‘जब भी देह होती हूँ' कविता-संग्रह का मुख्य स्वर स्त्रियों की वेदना को वाणी देना है और उनके कारणों पर प्रकाश डालना है। स्त्री यहाँ बेटी है तो चिड़िया भी। स्त्री को चिड़िया की तरह देखना एक चिरपरिचित तरीका है। इसमें पिंजड़े में बंद चिड़िया का भी भाव आ जाता है और अपने घर को छोड़ कर दूसरे घर जाने वाला भाव भी।
कवि के शब्दों में स्त्री का आग्रह है कि लोग अंतरा को भी सुनें, सुनें पूरा गीत। यानी कि औरत को उसकी पूर्णता में देखें, केवल स्थायी यानी देह के रूप में नहीं। कवि इसीलिए यह बात भी नोट करता है कि स्त्री घर के अंदर या घर के बाहर कहीं भी पूरे घर को साथ लिए होती है। वह अकेली कभी नहीं होती।
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