Samajik vyaktik sewa karya
Material type:
- H 361.3 MIS
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | Item holds |
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Gandhi Smriti Library | H 361.3 MIS (Browse shelf(Opens below)) | Available | 42465 |
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शिक्षा आयोग (1964-66) की संस्तुतियों के आधार पर भारत सरकार ने 1968 में शिक्षा सम्बन्धी अपनी राष्ट्रीय नीति घोषित की और 18 जनवरी, 1968 को संसद् के दोनों सदनों द्वारा इस सम्बन्ध में एक सङ्कल्प पारित किया गया। उस संकल्प के अनु पालन में भारत सरकार के शिक्षा एवं युवक सेवा मंत्रालय ने भारतीय भाषाओं के माध्यम से शिक्षण की व्यवस्था करने के लिए विश्वविद्यालयस्तरीय पाठ्यपुस्तकों के निर्माण का एक व्यवस्थित कार्यक्रम निश्चित किया। उस कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत सरकार की दात प्रतिशत सहायता से प्रत्येक राज्य में एक ग्रंथ अकादमी की स्थापना की गयी। इस राज्य में भी विश्वविद्यालय की प्रामाणिक पाठ्य पुस्तकें तैयार करने के लिए हिन्दी ग्रन्थ अका दमी की स्थापना 7 जनवरी, 1970 को की गयी।
प्रामाणिक ग्रन्थ निर्माण की योजना के अन्तर्गत अकादमी विद्यालयस्तरीय विदेशी भाषाओं की पाठ्यपुस्तकों को हिन्दी में अनूदित करा रही है और अनेक
विषयों में मौलिक पुस्तकों की भी रचना करा रही है। प्रकाशित ग्रंथों में भारत सरकार द्वारा स्वीकृत पारिभाषिक शब्दावली का प्रयोग किया जा रहा है।उपर्युक्त योजना के अन्तर्गत वे पाण्डुलिपियाँ भी अकादमी द्वारा मुद्रित करायी जा रही हैं जो भारत सरकार की मानक ग्रन्थ योजना के अन्तर्गत इस राज्य में स्थापित विभिन्न अधिकरणों द्वारा तैयार की गयी थींI सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का प्रादुर्भाव अत्यंत प्राचीन और सार्वभौमिक होने पर भी नवीन मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के विकास ने इसको सर्वया नए आयाम प्रदान किए हैं। पहले इसे केवल धार्मिक अनुष्ठानों का ही अंग माना जाता था, पर धीरे-धीरे इसके सामाजिक स्वरूप का विकास हुआ और इन सेवाओं को मात्र दया भावना पर आधारित मानकर वंचितों के प्रति आत्मसम्मान, योग्यता एवं आदर का भी ध्यान रखा जाने लगा अब तो सेवा के इस क्षेत्र में पर्यावरण को भी सम्मिलित कर लिया गया है अस्तु अब वैयक्तिक कार्यकर्ताओं का सम्बन्ध केवल एक व्यक्ति के रूप में न होकर परिवार, समाज तथा विश्व कल्याण की भावना से अनुप्राणित हो उठा है। इसी सामा जिक वैयक्तिक कार्य के प्रति समर्पित मदर टेरेसा को नोवल पुरस्कार प्रदान करने से भारत भी विश्व के सामाजिक वैयक्तिक नवोन्मेषी सेवा कार्य के आंदोलनों में भागीदारी का दावा करने लगा है। लखनऊ विश्वविद्यालय के समाज कार्य विभाग के प्रवक्ता डॉ० पी० डी० मिश्र ने बड़े परिश्रम और अध्यवसाय से सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य के वैज्ञानिक विकासको निपित किया है,I
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